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48 इस प्रकार (मनुष्य) अज्ञान भाव के कारण पर द्रव्यो को
आत्मा मे ग्रहण करता है और आत्मा को भी पर (द्रव्यो) मे रखता है। (सच है) मन्द बुद्धि (मनुष्य) (ऐसे ही होते हैं)।
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इस (कारण) से ही वह आत्मा निश्चयनय के ज्ञाताओ द्वारा (अज्ञानो) कर्ती कहा गया है। इस प्रकार जो निश्चयपूर्वक जानता है वह सब (प्राकर से) कर्तृत्व को छोड देता है।
50. व्यवहार से ही (कहा गया है कि) आत्मा इस लोक मे
घडा, कपडा, रथ आदि वस्तुओ को बनाता है, विविध क्रियाओ को (करता है), तथा (विविध) कर्मों को और (विविध) नोकर्मो को (उत्पन्न करता है)। ।
51 यदि वह (आत्मा) पर द्रव्यो को करे (तो) नियम से
(वह) तद्रूप हो जायेगा। चू कि (वह) तद्रूप नही होता
है, इसलिए वह उनका कर्ता नही है। 52 जीव (आत्मा) घडे को नही बनाता है, न ही कपडे को
(वनाता है) और न ही शेष वस्तुओ को (बनाता है)। (जोव) (अपने) योग और उपयोग के कारण तथा (उनका ही) उत्पन्न करनेवाला होने के कारण उनका ही कर्ता होता है। जो ज्ञान के प्रावरण (हैं), (वे) पुद्गल द्रव्यो के रूपान्तरण होते हैं। उनको आत्मा उत्पन्न नही करता है। (ऐसा)
जो जानता है, वह ज्ञानी होता है। चयनिका
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