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153 जीवस्स (जीव ) 6 / 1 जे (ज)
1/2 सवि गुरगा (गुरण) 1/2 केई (प्र) = कोई रत्थि ( अ ) = नहीं ते (त) 1/2 सवि खलु (घ) निश्चय ही परेसु (पर) 7 / 2 वि दव्वेसु (दव्व) 7/2 तम्हा (प्र) = इसलिए सम्मादिट्टिम्स ( सम्मादिट्ठि) 6/1 वि रागो (राग) 1 / 1 दु (अ) - बिल्कुल विसएसु (विसप्र ) 7/2
154 पास डिय1 ( पास डिय) मूलशब्द 6 / 2 लिंगारिख (लिंग) 2/1 * (अ) = श्रीर गिहिलिंगारिग [ ( गिहि ) - (लिंग) 2 / 1] 2 (अ) = प्रोर बहुव्ययाराणि (बहुप्पयार ) 2 / 2 वि घेत्तु ( घेत्तु ) सकृ अनि वदति ( वद ) व 3 / 2 सक मूढा ( मूढ ) 1/2 वि लिगमिरग [ (लिंग) + (इ)] लिंग ( लिंग ) 1 / 1 इण ( इम) 1 / 1 मोबखमग्गो [ ( मोक्ख ) - ( मग्ग) 1 / 1] ति (श्र)
11 इस प्रकार
1
बघ (वध) 2 / 1 पुष्पण (पुण्ण) 2 / 1 च (प्र) = प्रौर पावं (पाव) 2 / 1 च (प्र) = तथा
155 ग ( प्र ) = नही दु ( अ ) = निश्चय ही होदि (हो) व 3 / 1 ग्रक मोक्खमग्गो [ ( मोक्ख ) - ( मग्ग) 1 / 1] लिंग (लिंग) 1 / 1 ज ( अ ) ==क्योकि देहरिणम्नमा ( (देह) - (गिम्मम ) 1/2 वि] अरिहा (afte) 1/2 लिंग (लिंग) 2/1 मुइत्तु 3 ( मुप्र ) सकृ दसरणखाणचरिताणि [ ( दमण ) - ( लाण ) - ( चरित) 2 / 2 ] सेवते (मेव) व 3 / 2 सक
2
3
100
=
पद्य में किसी भी कारक के लिए मूल सज्ञा शब्द काम ( पिशल प्राकृत भाषाओं का व्याकरण पृष्ठ 517 ) ।
'और' प्रथ को प्रकट करने के लिए 'थ' भव्यय कभी कभी दो बार प्रयोग किया जाता है ।
मुत्र + मुत्तु (यहाँ उपर्युक्त 'मुद्दत्त' मे अनुस्वार का लोप हुप्रा है ( हेम प्राकृत - व्याकरण 2-156 वृत्ति ) ।
]
लाया जा सकता है
समयसार