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वण्णादी [ (वण्ण) + (प्रादी) ] [ (वण्ण)-(ग्रादि) 1/2 ] ससारपमुक्काण [ (ससार)-(पमुक्क) 6/2 वि] एत्यि (अ)= नही है दु (अ) परन्तु वण्णादो [ (वण्ण) + (आदओ) ] [ (वण्ण)-(पाद) 1/1 'अ' स्वार्थिक] केई (अ)=किसी भी प्रकार का
28 जीवो (जीव) 1/1 चेव (अ) निस्सन्देह हि (अ)=पादपूरक
एदे (एत) 1/2 सवि सव्वे (सम्व) 1/2 सवि भाव (भाव) मूल शब्द 1/2 त्ति (अ)-इम प्रकार मापसे (मण्ण) व 2/1 सक जदि (अ) यदि हि (अ)=निश्चय से जीवस्साजोवस्स [ (जीवस्स) + (अजीवस्स)] जीवस्स (जीव) 6/1 अजीवस्स (अजीव) 6/1 य (अ) ही रणत्थि (अ)-नही है विसेसो (विसेस) 1/1 दु (अ)=तो दे (प्र)-पादपूरक कोई (अ)-कोई जाव (अ)=जब तक ण (अ)=नही वेदि० (वेदि) व 3/1 सक अनि विसेसतर [ (विसेस) +अतर] [ (विसेस)-(अंतर) 211) तु (अ)=पादपूरक प्रादासवाण [ (पाद)+(आसवाण) } [ (पाद)-(प्रासव) 612 ] दोण्ह (दो) 6/2 सवि पि (अ) ही
1 कभी कभी सप्तमी के स्थान पर पष्ठी का प्रयोग पाया जाता है हिम-प्राकृत - व्याकरण, 3-134)। 2 कभी कभी 'ईदोघं हो जाता है। 3 पद्य में किसी भी कारक के लिए मूल सज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है
(पिशल प्राकृत भाषामों का व्याकरण, पृष्ठ, 517)। 4 कमी कभी सप्तमी के स्थान पर पष्ठी का प्रयोग पाया जाता है (हेम-प्रात
व्याकरण, 3-134) । 3 कभी कमी 'ई' दोघं कर दिया जाता है (पिशल पृष्ठ 138) 6 विद्-वेत्ति- वेदि (भदादिगण परस्मैपदी)
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समयसार