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(ग्गहण) 1/1] जीवमणिहिट्ठसठाण [ (जीव) + (मणिट्ठि) + (सठाण)] जीव (जीव) 1/1[(प्रणिहिट्ठ) वि-(मंठाण) 1/1] जीवस्स (जीव) 611 पत्थि (म)=नही है वष्णो (वण्ण) 1/1 ण (म)=नही वि (म)=भी वि य (प्र)=भी गधो (गध) 1/1 रसो (रस) 1/1 फासो (फाम) 1/1 स्वर (स्व) 1/1 सरीर (सरीर) 1/1. सठाण (सठाण) 1/1. सहरणरण (सहणण) 1/1 जीवस्स (जीव) 6/1 रणत्यि (म)= नही है रागो (राग) 1/1 रण (अ)=नही वि (अ)=भी दोसो (दोस) 1/1 एंव ()नही विज्जदे (विज्ज) व 3/1 अक मोहो (मोह) 1/1 गो (प्र) =नही पच्चया (पच्चय) 1/2 कम्म (कम्म) 1/1 पोकम्म (खोकम्म) 1/1 चावि (अ) और भी से (त) 6/1 स एदेहि (एद) 312 स य (अ)=पादपूरक सबंधो (सवध) 1/1 जहेव (अ)=समानता व्यन करने के लिए प्रयुक्त होता है। खीरोदय [(खीर)+ (उदय)] [खीर)-(उदय) 1/1] मुणेदव्वो (मुण) विधिकृ 1/1 ण (अ)=नही य (अ)=बिल्कुल होति (हो) व 3/2 अक तस्स (त) 6/1 स तारिण (त) 1/2 स दु (अ)तो उवप्रोगगुणाधिगो [ (उवनोग)+ (गुण)+ (अधिगो) ] [(उवमोग)-(गुण)-(आधिग) 1/1 वि] जम्हा (प्र)=क्योकि
1 कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर पष्ठी का प्रयोग पाया जाता है (हेम
प्राकृत-व्याकरण, 3-134)1, 2 रूप-रूवः शन्द (माप्टे सस्कृत-हिदी कोश)। 3 देखें गाया 21 4 'सह', 'साथ के योग मे तृतीया होती है । 5 कभी कभी सप्तमी के स्थान पर षष्ठी का प्रयोग पाया जाता है (हेम-प्राकृत
व्याकरण, 3-134)।
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समयसार