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. भारत में आज जनता का राज्य हैं । योग्य व्यक्ति अपनी बुद्धि तथा बल का प्रयोग करके महत्वपूर्ण कार्य कर सकते हैं। प्रत्येक मानव पर आज महान् उत्तरदायित्व है। देश की स्वाधीनता का अर्थ इतना ही नहीं कि विदेशी शासकों को कुसी पर देशी शासक बैठ जाएं। सच्ची स्वाधीनता में देश की कल्याण कारिणी परम्पराओं को तथा संस्कृति की सुरक्षा भी गभित है । भारत स्वाधीन हो कर भी अगर अपनी परम्परागों की और अध्यात्म प्रधान संस्कृति की रक्षा नहीं करता और विदेशियों के ही अनिष्ट आचार-विवार का अन्धानुकरण करता है तो इस स्वाधीनता का कोई विशेष अर्थ नहीं । भारत की आत्मा अगर उन्मुक्त न हुई तो वह स्वाधीनता किस काम की ? स्वाधीनता को सच्चा लाभ तय हैं जब आप अपने देश की महान् सभ्यता का जो जनमंगल कारिणी है और जीवन के अन्तरंग तत्व के विकास पर भार देती है, प्रचार
और प्रसार करें और अखिल विश्व के समक्ष उसका सच्चा स्वरूप प्रस्तुत करें। किन्तु आज उनटी गंगा बह रही है । देश के देशो शासक विदेशों की नकल कर रहे हैं, उनकी संस्कृति को इस देश पर लादने का प्रयास कर रहे हैं, हिंसा बढ़ रही है, अनैतिकता अपना सिर ऊंचा उठा रही है, घूसखोरो, भ्रष्टाचार और पक्षपात बढ़ता जा रहा है । देश के इस अधःपतन को देख कर विवेकशील जन ही सोचते हैं कि आखिर इस दशा का कहां अन्त आएगा ? देश कहां जाकर रुकेगा?
__इस परिस्थिति में परिवर्तन लाने का कार्य शक्तिशाली व्यक्ति कर सकते हैं। शक्तिशाली वे जो वल-बुद्धि तथा आत्तिक शक्ति से युक्त हैं। जिन्होंने इस तथ्य को भलीभांति हृदयंगम कर लिया हो कि जीवन और धर्म अभिन्न हैं । धर्म की उपेक्षा करके व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन का उत्थान होना संभव नहीं है । प्रजा में धार्मिक भावना को जगाये बिना देश में फले अनाचार का उन्मूलन नहीं हो सकता । 'धर्मो रक्षति रक्षितः' अगर हम धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म भी हमारी रक्षा करेगा।
- जो लोग पेट पूत्ति की समस्या से ही परेशान हैं, उनसे सामाजिक कार्य करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती ! श्रीमान् लोग अगर इस कार्य को