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कर भविष्य को भूल जाता हैं । वह भूल जाता है कि उसे पर लोक में जाना होगा और वहां पुण्य के अभाव में क्या कठिनाइयां उठानी पड़ेगी।
...... बन्धुओं ! इस छोटे-से वर्तमान के लिए दीर्घ भविष्य को विस्मृत मत " करो। जैसे पूर्व पुण्य का फल यहां भोग रहे हो, उसी प्रकार यहां भी पाप से बचो और पुण्य का उपार्जन करो जिससे आगे भी उतम संयोग प्राप्त कर सको और उन उतम संयोगों का सदुपयोग करके आत्मा का कल्याण साधन कर सको। . .
__ जो पुण्य को बढ़ाएंगे वे कभी किसी से भय नहीं खाएंगे। वे इहलोक और परलोक में निर्भय रहेंगे। कुछ करने का फल ही आज हमें इस रूप में प्राप्त हैं । अन्यथा यों संसार में कौन किसे पूछता है ? ...
बीज अच्छे खेत में बोया जाता है तो पौधे के रूप में लहलहाने लगता है । वही अगर नाली में डाल दिया जाय तो सड़ जाएगा पर पौधे के रूप में विकसित नहीं हो सकेगा। इसी प्रकार धन रूपी बीज अगर अच्छे खेत में डाला जाय, सुकृत्य में लगाया जाय तो वह पुण्य रूपी पौधे के रूप में विकसित होता है । कुकर्म ऊपर या खारी भूमि है, और सुकर्म सुन्दर खेत है। हमें बीज वहां डालना है जहां वह फूले, फले और विकसित हो। जो ऐसा करता है वही प्रथम श्रेणी का मानव है, उदय में उदय करने वाला है। .
जीवन, धन और वैभव जाने वाली वस्तुएं हैं किन्तु इन जाने वाली वस्तुओं से कुछ लाभ उठा लिया जाय, अपने भविष्य को कल्याणमय बना लिया जाय, इसी में मनुष्य की बुद्धिमत्ता, है, विवेकशीलता है । कहा भी है
गढ़ रहे न गढ़पति रहे, रहे न सकल जहान । दोय रहे नृप मान कहे, नेकी बदी निदान ॥
सुकृत करने वाला मनुष्य अपना नाम संसार में चिरस्थायी बना जाता है । काल की चक्की उसके यश को खण्डित नहीं कर सकती। युग पर युग व्यतीत हो जाते हैं परन्तु लोगों की जीभ पर उसका सुयशगान बना रहता है।