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... (५) कामभोग की तीव्र अभिलाषा-कामभोग की तीव्र अभिलाषा .. चित्त में बनी रहती है तो अध्यवसाय में मलीनता रहती है । अतएव प्रत्येक श्रावक
का यह कर्तव्य है कि वह काम वासना की वृद्धि न होने दे, उसमें तीव्रता न आने ... दे । काम वासना की उत्तेजना के यों तो अनेक कारण हो सकते हैं और बुद्धिमान . - . व्यक्ति को उन सब से बचना चाहिए, परन्तु दो कारण उनमें प्रधान माने जा
सकते हैं । दुराचारी लोगों की कुसंगति और खानपान संबंधी असंयम । व्रती पुरुष भी कुसंगति में पड़ कर गिर जाता है और अपने व्रत से भ्रष्ट हो जाता है। इसी प्रकार जो लोग आहार के संबंध में असंयमी होते हैं, उत्तेजक भोजन . करते हैं, उनके चित्त में भी काम भोग की अभिलाषा तीब्र रहती है । वास्तव में ग्राहार विहार के साथ ब्रह्मचर्य का बहुत घनिष्ठ संबंध है।। अतएव .. ब्रह्मचर्य की साधना करने वाले को इस विषय में सदा जागरूक रहना चाहिए।
मांस, मदिरा, अंडा, आदि का उपयोग करना ब्रह्मचर्य को नष्ट करने का ___कारण है । कामोत्तेजक दवा और तेज मसालों के सेवन से भी उत्तेजना पैदा - होती है।
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... तीन काम-वासना होने से व्रत खंडित हो जाता है और आत्मा की - शक्तियां दब जाती हैं, अतएव पवित्र और उच्च विचारों में रमण करके गंदे
विचारों को रोकना चाहिए।
..... ब्रह्मचर्य को व्रत के रूप में अंगीकार करने से भी विचारों की पवित्रता में सहायता मिलती है। मनुष्य के मन की निर्बलता. जब उसे नीचे गिराने लगती है तब व्रत की शक्ति ही उसे बचाने में समर्थ होती है। ब्रत. अंगीकार नहीं करने वाला किसी भी समय गिर सकता है. उसका जीवन बिनापाल की तलाई जैसा हैं किंतु व्रती का जीवन उज्ज्वल होता है। उसमें एक
प्रकार की दृढ़ता आ जाती है जिससे अपावन विचार उस पर अपना प्रभाव . नहीं डाल सकते । अतएव किसी पाप या कुकृत्य को न करना ही पर्याप्त नहीं
है वरन् न करने का व्रत ले लेना भी आवश्यक है। पूर्व समय की तेजस्विता का कारण ब्रह्मचर्य की सुरक्षा ही है । पूर्व समय में वनराज चावड़ा की बड़ी ख्याति थी उसके पिता बड़े पराक्रमी. थे। वनराज. चावडा के पिता ने,