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-हत ज्ञाने क्रियाहीन, हता चाज्ञानिनां क्रिया। अर्थात् क्रिया से रहित ज्ञान और ज्ञान से रहित क्रिया वृथा है। वह विशान से विशाल और गंभीर से गंभीर ज्ञान प्राखिर किस काम का है जो .. - कभी व्यवहार में नहीं पाता ? उससे परमार्थ की तो बात दूर, व्यवहार में भी
लाभ नहीं हो सकता । जो मनुष्य अपनी मंजिन तक जाने के मार्ग को जानता। . है, दूसरों को बतला भी देता है, मगर स्वयं एक कदम भी नहीं उठाता, उस...
ओर चलने का कष्ट नहीं उठाना चाहता वह क्या जीवन पर्यन्त भी अपनी .. . मंजिल पर पहुँच सकेगा ? कदापि नहीं। ज्ञान पथ को आलोकित कर सवता.... .:. है मगर मंजिल तक पहुँचा नहीं सकताः। ... ... .....
............ . ..... .. - एक दीर्घकाल का रोगी है । अनेकों चिकित्सकों के पास पहुँच कर उसने
रोग की औषध पूछी है । उन औषधों को वह भलीभांति समझ गया है, मगर . जब तक औषध का सेवन नहीं करेगा, तब तक क्या ज्ञान मात्र से वह स्वास्थ्य लाभ कर लगा ............................ .... .
इससे भलीभांति सिद्ध है कि कोरा ज्ञान, क्रिया के अभाव में कार्यसाधक नहीं होता। इसी प्रकार शानहीन क्रिया भी फलप्रद नहीं होती। एक मनुष्य अपनी मंजिल पर पहुँचने के लिए चल रहा है। चल रहा है और चलता ही ...
जा रहा है। मगर उसे पता नहीं कि किस मार्ग से चलने पर मंजिल तक पहुँचा । - जाएगा। ऐसी दशा में उसका चलना किस काम आएगा? अज्ञान के कारण, ...
संभव है उसका चलना उसकी मंजिल को और अधिक दूर कर दे । मंजिल तक
पहुँचने के लिए, मंजिल से विरूद्ध दिशा में चलने वाला कब मंजिल तक पहुँच ... - सकेगा ? रोगी रोग के शमन के लिए औषय को जानने का प्रयत्न न करें और .
अनजाने कुछ भी अंटसंट खाता रहे तो क्या वह रोग का निवारण करने में .. समर्थ हो सकेगा? . ....... ........
- जो मनुष्य यह नहीं देखता कि जिसे वह खा रहा है वह गुणकारी है या हानिकारक, उसे गंभीर परिणाम भुगतना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में कई
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