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। अन्त में वर्ग नाग समस्थिति में प्राकार स्वर्गवासी हया। उसकी स्वर्गप्राप्ति का कारण था-विपक्ष से मस स्थिति में प्राना, पोर्त-रोद्र भाव
त्यागना और विपय-कपायों से विलुख होकर शान्त चित्त होना । . . ... सामायिक साधना का प्रथम सोपान सम्यक्त्व सामायिक है। सम्यक्त्व :
की प्राप्ति होने पर ही श्रुत के वास्तविक मर्म को समझा जा सकता है । अतएव --- श्रत सामायिक को दूसरा सोपान कहना चाहिए । श्रत सामायिक प्राप्त कर
लेने पर चारित्र सामायिक को प्राप्त करना आलान होता है । चरित्र .सामायिक श्रत सामायिक के बिना स्थिर नहीं रह सकती। श्रत सामायिक .. .... - के द्वारा साधक को एक ऐसा बल मिलता है जिनके कारण देव और दानव भी , उसका अहित नहीं कर सकते । अानन्द, कामदेव, बुण्ड बोलिक आदि गृही साधक सामायिक साधना के बल पर अमर हैं। .
भगवान् महावीर स्वामी ने श्रमणों को सम्बोधित करते हुए कहा कि कामदेव के समान साधना करो देव ने हाथी, सर्प आदि का विकराल रूप धारण .. करके कामदेव को धर्म से च्युत करने में कुछ उठा नहीं रक्खा, किन्तु उसकी
एक न चली । कामदेव अपनी साधना में अडिग रहा । जिसके जीवन में साधना - नहीं होती, वह थोड़े-से-विक्षेप से भी चलायमान, उद्विग्न और अधीर हो जाता
है, चुटकी से भी विचलित हो जाता है किन्तु आज साधना के शुद्ध स्वरूप की । ...और दुर्लक्ष्य किया जा रहा है। - सामायिक-साधना वह शक्ति है जो व्यक्ति में नहीं, समाज और देश में .. . भी विजली पैदा कर सकती है । व्यक्ति-व्यक्ति के जीवन में यह साधना आनी
वाहिए जिससे उसका व्यापक प्रभाव अनुभव किया जा सके। . - प्राचीन भारतीय विद्वानों में एक चीज की कमी रही जो आज भी ...
खटकती है। उन्होंने पृथक्-पृथक रूप से जो अनुभव और चिन्तन किया, . उसका संकलन करके, उसके आगे की कड़ी के रूप में चिन्तन नहीं हुआ। उनके महत्त्वपूर्ण प्रयास विखरे-बिखरे रहे । उनका मेल - मिलाने का कोई