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तेला कर लिया और उसी समय युद्ध के लिए तैयार हो गए। देश रक्षा का आदेश मिलने पर जी चुराना उन्होंने पाप समझा। वे पौषधशाला से बाहर .. निकले और रथ तैयार करवा कर युद्ध के मोर्चे पर चल दिए। ..........
....... शास्त्रों के ये उल्लेख अहिंसा के स्वरूप को समझने में हमारे लिए बहुत
सहायक हैं । इनसे स्पष्ट हो जाता है कि अहिंसा की गोद में कायरता को नहीं : छिपाया जा सकता । अहिंसा कर्त्तव्य भ्रष्टता का समर्थन नहीं करती। अहिंसा :: - के नाम पर अगर कोई देश की रक्षा से मुंह मोड़ता है और अत्याचार को सहन - करता है तो वह अहिंसा को बदनाम करता है । एक व्यक्ति जव शासन सूत्र - अपने हाथ में लेता है या सेनापति का पद ग्रहण करता है तो देश और प्रजा
की रक्षा करने का उत्तरदायित्व उस पर आ जाता है। किन्तु उस उत्तरदायित्व निभाने का अवसर आने पर अगर अहिंसा की आड़ में उससे बचने का प्रयत्न करता है तो वह कायर है, उसे वर्मनिष्ठ नहीं कहा जा सकता।
अत्याचार करना अहिंसा है तो कायर बन कर अत्याचार सहना और अत्याचार होने देना भी हिंसा है। ... यों तो श्रावक. स्थूल संकल्पजनित हिंसा का त्यागी होता है किन्तु . : निरपराध की हिसा का ही वह त्याग करता है । स्वरक्षा या देश रक्षा में होने ..
वाली हिंसा का वह त्याग नहीं करता। उस समय भी उसका विचार रक्षा का - ही होता है । हिंसा का अवलम्बन वह विवशता से करता है। ... .
वरुण नाग तपश्चर्या की स्थिति में भी युद्ध में संलग्न हो गया । युद्ध . करते-करते जब देखा कि शरीर अब टिक नहीं सकता तो वह सावधान हो गया
और अन्तिम समय की साधना में तत्पर हो गया। युद्ध करते समयः भी, शत्रुओं पर गाढा प्रहार करते समय भी हिंसा में रक्षानुभूति उसे नहीं हो रही थी। गीता में जिसे निष्काम कर्म कहा गया है, वही कर्म वह दत्तचित्त होकर प्रामाणिकतापूर्वक कर रहा था।