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करने से व्रतभंग नहीं होगा, यह धारणा भ्रमपूर्ण हैं । अतएव स्वकीय पत्नी के - अतिरिक्त सभी स्त्रियों को परस्त्री समझना चाहिए।
.. (३) अनंग क्रीडा-कामभोग के प्राकृतिक अंगों के अतिरिक्त जो अग हैं, वे यहां अनंग कहलाते हैं। उनके द्वारा काम चेष्टा करना ब्रह्मचर्य व्रत का दूषण है । जब कामुकवृति तीव्रता के साथ उत्पन्न होती हैं तो मनुष्य का विवेक विलुप्त हो जाता है । वह उचित-अनुचित के विचार को तिलांजलि दे
देता।है और गहित से गहित कृत्य भी कर डालता है । अतएव इस प्रकार की.. __ उतेजना के कारणों से सद् गृहस्थ को दूर ही रहना चाहिए। ..
श्रावक भी मोक्षमार्ग का पथिक है । वह अपने जीवन का प्रधान ध्येय सिद्धि (मुक्त) प्राप्त करना ही मानता है और तदनुसार 'यथाशक्ति' 'व्यवहार' भी करता है। फिर भी वह अर्थ और काम की प्रवृति से सर्वथा विमुख नहीं हो पाता, यह सत्य है मगर अर्थ एवं काम संबंधी प्रवृति उसके जीवन में आनुवंगिक (गौण) ही होती है । पथिक अपने गन्तव्य स्थान पर पहुँचने के लिए अनेक स्टेशनों और पड़ावों से गुजरात है, मार्ग में अनेक दृश्य देखता है। निर्धारित स्थान पर पहुँचने के पूर्व बीच में कितनी ही बातें देखता-सुनता है । इसी प्रकार साधक भी मोक्षमार्ग का पथिक है । वह शब्द-रूप आदि को सुनता ... देखता और अनुभव करता है । भूमि, धन आदि से भी उसका कान पड़ता है, परन्तु वह उनमें उनझता नहीं और अपने लक्ष्य-मोक्ष को नहीं भूलता।
कितने ही कामुक अनंग क्रीड़ा करके अपनी काम वासना को तृप्त करते हैं । ऐसे लोग समाज में कदाचार को बढ़ाते हैं, अपना सर्वनाश करते, हैं और अपने सम्पर्क में आने वालों को भी अध : पतन की ओर ले जाते हैं । सद्गृह थ ऐसे कृत्यों से अपने को बचाये रखता है।
पूर्व काल में, अनेक दृष्टियों से सामाजिक व्यवस्था बहुत उत्तम थी। 3. लोग ब्रह्मचर्य का अभ्यास करने के बाद गृहस्थाश्रम में प्रवेश करते, शिक्षा की
व्यवस्था ऐसी थी कि उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए अनुकूल वातावरण प्राप्त होता था। जब कारण शुद्ध होता है तो कार्य भी शुद्ध होता है। अगर कारण में ही अशुद्धि हुई तो कार्य स्वतः अशुद्ध हो जाएगा।