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________________ ............ निमित्त-उपादान - जीवन को साधना में लगाने के लिए निरन्तर प्रेरणा की आवश्यकता ... ... होती है । वह प्रेरणा प्रान्तरिक और बाह्य दोनों प्रकार की चाहिए । संसार - में जितने भी कार्य दृष्टि गोचर होते हैं, उनकी उत्पत्ति किसी भी एक कारण से नहीं होती, दूसरे शब्दों में यों कह सकते हैं कि कार्य का उत्पाद सामग्री से... : होता है। सामग्री का अर्थ है-उपादान एवं विविध निमित्त कारणों की समग्रता। .. निमित्त के अभाव में अकेले उपादान से कार्य नहीं होता.और न उपादान के बिना निमित्त कारण से ही कार्य का होना संभव है। साधना कार्य में भी यही : व्यापक नियम लागू होता है। बाह्य कारण भी प्रायः अनायास नहीं मिलता, फिर भी उसका मिलना आसान है। किन्तु बाह्य कारण के द्वारा यदि अंतरंग कारण न मिला तो - साधक अपना जीवन सफल नहीं बना सकेगा। - साधना के क्षेत्र में अनेक बाह्य कारण उपयोगी होते हैं। साधक को : योग्यता, रूचि, वातावरण आदि पर यह अवलम्बित रहता है कि कौन-सा कारण किसके लिए उपयोगी हो जाय । तथापि सत्संग बाह्य कारणों में सब से ऊँचा है । वीतराग के सत्संग का लाभ मिलना सौभाग्य की बात है, परन्तु बाह्य कारण ही सब कुछ नहीं है. । बाह्य कारण के मिलने से सभी को लाभ हो जाएगा, ऐसी बात नहीं है। बाह्य कारण के साथ प्रान्तरिक कारण को भी जागृत करना अनिवार्य रूप से आवश्यक है ।.... . - . . .. ..पण
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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