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" एक घुड़सवार घोड़े से गिर पड़ा। किसी ने उससे कहा-क्या भाई, गिर पड़ ? उसने लजाते हुए कहा-नहीं, कहां गिरा हूँ ! उसका पांव तो पायदान में लटक रहा था, तथापि उपहास के भय से उसने प्रत्यक्ष गिरने को.... भी स्वीकार नहीं किया। . . . . . . . . ....
भूल होना कोई असाधारण बात नहीं। प्रत्येक छपस्थ प्राणी से कभी न कभी भूल हो ही जाती है। मगर उस भूल को स्वीकार न करना और छिपाने का प्रयत्न करना भूल पर भूल करना है। ऐसा करने वाले के सुधार की संभावना बहुत कम होती है। अतएव प्रत्येक समझदार व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह खूब सोच-समझकर ही कोई कार्य करे और भूल न होने दे
तथापि कदाचित् भूल हो जाय तो उसे स्वीकार करने और सुधारने में . आनाकानी न करे । भूल को स्वीकार करना दुर्बलता का नहीं बलवान् होने..
का लक्षण है । भगवान् महावीर का कथन है कि अपनी भूल को गुरु के समक्ष निश्छल भाव से निवेदन कर देने वाला ही आराधक होता है.। ऐसे साधक की .. ''साधना ही सफल होती है।
... अपनी भूल को छिपाना ऐसा ही है जैसे शरीर में उत्पन्न हुए फोड़े को ... .. छिपाना । फोड़े को छिपाने से वह बढ़ जाता है, उसमें जहर उत्पन्न हो जाता
है और अन्त में वह प्राणों को भी ले बैठता है। उसे उत्पन्न होते ही चिकित्सक को दिखला देना बुद्धिमत्ता है। इसी प्रकार जो भूल हो गई है, कोई दुष्कृत्य हो गया है, उसे गुरुजन के सामने प्रकट न करना अपने साधना जीवन को विषाक्त बनाना है।
............. मुनि स्थूलभद्र महान् साधक थे। उन्होंने अपनी भूल को स्वीकार करने
में तनिक भी आनाकानी नहीं की। संघ ने भी उनकी सिफारिश की । संघ में . . कहा-एक बार की चूक के कारण ज्ञान देने का कार्य बंद नहीं होना चाहिए। - मुनिमंडल ने प्राचार्य के चरणों में प्रार्थना की-भगवन् ! महामुनि स्थूलभद्र - ... से स्खलना होगई है । उसकी हम अनुमोदना नहीं करते, किन्तु चलने वाले से..
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