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आनन्द के माध्यम से जगत् के समस्त सन्तप्त प्राणियों को वह मार्ग दिखलाया। ..
निसर्ग के नियम को कौन टाल सकता है ? प्रतिदिन सुनहरा प्रभात - उदित होता हैं तो सन्ध्या भी अवश्य आती है। प्रभात हो किन्तु सन्ध्या नं
पाए, यह कदापि संभव नहीं है। प्राणी के जीवन में भी प्रभात और सन्ध्या का आगमन होता है.। जन्म प्रभात है तो मरण संध्यावेला है।
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.......... ...जातस्य हि ध.वं मृत्युः, ध्र वं जन्म मृतस्य च।
. जिसने जन्म ग्रहण किया है, उसका मरणं अनिवार्य है और जो मरण शरण हुआ है उसका जन्म भी निश्चित है। ... पशु-पक्षी और कीट-पतंग की तरह मरना जन्म-मरण के बन्धन को बढ़ाना है ! भगवान महावीर ने कहा-मानव ! तू मरने की कला सीख ! मृत्यु जब सत्य है तो उसे शिव और सुन्दर भी बना ! उसके विकराल रूप की
पना करके तूं मृत्यु के नाम से भी थर्रा उठता है, मगर उसके शिव-सुन्दर स्वरूप को क्यों नहीं देखता? :.:.. :. ... कहा जा सकता है कि मुत्यु विनाश है, संहार है, जीवन का अन्त है। उसमें शिवत्व और सौन्दर्य कैसे हो सकता है ? इसका उत्तर यह है कि अज्ञानी जीव प्रायः प्रत्येक वस्तु की काली बाजू ही देखा करते हैं। शुक्ल पक्ष उन्हें दृष्टिगत नहीं होता। मृत्यु यदि विनाश है तो क्या नवजीवन का निर्माण नहीं है ? संहार है तो क्या सृष्टि नहीं है ? जीवन का अन्त है तो क्या नूतन जीवन की. आदि नहीं है ? क्या मृत्यु के बिना नवजीवन की भेंट किसी को हो. सकती है ? .
- ज्ञानी और प्रशानी की विचारणा में बहुत अन्तर होता है। ज्ञानीजन