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सिर का भार हल्का करने के लिए 'वह भार को ऊँचा उठा लेता है या लघुशंका करने बैठ जाता है तो यह उसका दूसरा विश्राम कहलाता है। यह भी अस्थायी विश्राम है।
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कुछ और आगे चलने पर जब अधिक थंक जाता है तो किसी चबूतरे पर या देवस्थान पर भारा टिकाकर खड़े-खड़े विश्राम लेता है। भार को वह - वहां सुनियोजित भी कर लेता है। यदि भार विक्रय के लिए है तो वह एक के
दो कर लेता है या बड़ा सा दिखलाने के लिए उसे विशेष तरीके से जमाता है। ... यह उसका तीसरा विश्राम है।
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- अपनी मंजिल तक पहुँचने पर या किसी को बेच देने पर उसे चौथा विश्राम मिलता है। यह द्रव्यविश्रान्ति का रूप है।
- सांसारिक जीवों के लिए भी इसी प्रकार के चार विश्रान्तिस्थल हैं। चौबीसों घंटे प्रारम्भ-समारम्भ का भार लाद कर चलने वाला मानव सौभाग्य से जब सत्संग पा लेता है तो वह कंधा बंदलने के समान पहलो विश्रान्तिस्थान
है। इस स्थिति में शारीरिक और वाचनिक व्यापार का भार उतर जाता है, - सिर्फ मन पर भार लदा रहता है । सन्त समागम की दशा में भी संसारी जीव
के मन को कड़ी पर प्रारम्भ-समारम्भ का भार अटका रहता है । इस पर भी . .
उसे किंचित् विश्राम मिलता है। इस पर श्रमणों के सानिध्य में उपाश्रय में .. आकर बैठने से गृहस्थ को पहला विश्राम मिलता है।
..... सामायिक व्रत-को अगीकार करना या देशावकाशिक व्रत धारण करना
और कुछ पापों का निसेव करना दूसरा विश्रामस्थल है। इन व्रतों को धारण करने से प्रशान्त मन को कुछ शान्ति मिलती है। ..
समस्त प्रारंभ समारंभ को चौबीस घंटे के लिए त्याग कर पौषध व्रत धारण करना तीसरा विश्रामस्थल है। ...........