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३३४] स्पृहणीय आदर्श उपस्थित किया, उसने अपने जीवन को फलवान् बनाया है। इस प्रकार जो अपने जीवन को सुधारता है, वह अपनी मृत्यु को भी सुधारने में समर्थ वनता है। जिसका जीवन आदर्श होता है, उसका मरण भी आदर्श होता है।
कई लोग समझते हैं कि अन्तिम जीवन को संवार लेने से हमारा मरण संवर जाएगा; मगर स्मरण रखना चाहिए कि जीवन के संस्कार मरण के समय उभर कर आगे आते हैं। जिसका समग्र जीवन मलीन, पापमय और . कलुषित रहा है, वह मृत्यु के ऐन मौके पर पवित्रता की चादर ओढ़ लेगा, यह ... संभव नहीं है । अतएव जो पवित्र जीवन यापन करेगा। वहीं पवित्र मरण को.... वरण कर सकेगा और जो पवित्र मरण को वरण करेगा उसीका आगामी जीवन आनन्दपूर्ण वन सकेगा।
__ जीवनसुधार के लिए आवश्यक है कि मनुष्य अपनी स्थिति के अनुकूल व्रतों को अंगीकार करके प्रामाणिकता के साथ उनका पालन करे। जो संसार । से उपरत हो चुके हैं और जिनके चित्त में वैराग्य की अमियां प्रवल हो उठी हैं, वे गृहत्यागी बनकर महाव्रतों का पालन करते हैं। जिनमें इतना सामर्थ्य ... विकसित नहीं हे पाया या जिनका मनोबल पूरी तरह जागृत नहीं हुआ वे गृहस्थ में रहते हुए श्रावकधर्म का परिपालन करते हैं । व्रतसाधना ही जीवन सुधार का अमोघ उपाय है । मरणसुधार जीवनसुधार की चरम परिणति है।
... शास्त्र में चार प्रकार के विश्राम बतलाए गए हैं । उदाहरण के द्वारा उन्हें समझने में सुविधा होगी-एक लकड़हारा जंगल से जलाऊ लकड़ी काट कर लाता है। लकड़ियों का भारा बनाकर और उसे सिर पर रखकर वह
लम्बी दूर तय करता है। वोझ और चाल के कारण उसका शरीर थक जाता: - है । भारा उसके सिर के लिए दुस्सह हो जाता है। तब वह सिर के भारे को..
कंधे पर रख लेता है । जव उस कंधे में दर्द होने लगता है तो उसे दूसरे कंधे पर : .. रखता है । यह उस लकड़हारे का पहला विश्राम है। .....