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मैंने शरणार्थियों के एक मोहल्ले में एक बार देखा-गुरुद्वारा से गुरु. . ग्रन्थ साहब की सवारी निकाली जा रही है । ग्रन्थ साहब को जरी के कपड़े में : .. : लपेट कर एक सरदार अपने मस्तक पर रख कर ले जा रहे हैं. इस प्रकार
मस्तक पर रख कर अथवा हाथी के होने पर सवार करके जुलूस निकालना वास्तविक श्रुतपूजा नहीं हैं। इससे तो यही प्रदर्शित होता है कि समाज की उस ग्रन्थ के प्रति कैसी भावना है, यह दूसरे भाइयों के चित्त को उस ओर
खीचने का साधन है किसी भी ग्रन्थ को सच्ची भक्ति तो उसके सम्यक पठन.. पाठन में हैं। . ... . . . ...... . . .. भारतीय जैन-जैनेतर साहित्य के संरक्षण में जैन समाज का असाधारण योग रहा है। उन्होंने ज्ञानोपासना की गहरी लगन से साहित्य भंडार बनाये और सहस्त्रों ग्रंथों को नष्ट होने से बचाया है। किन्तु आज जैनों में भी पहले
के समान भीतरी और बाहरी शास्त्र संरक्षण का भाव नहीं दीख पडता। यह - स्थिति चिन्तनीय है।
.. श्रत के विनय चार हैं, जो इस प्रकार हैं(१) सूत्र की वाचना करना।
(२) सूत्र की अर्थ के साथ वाचना करना। .. . (३) हित रूप वाचना करना।
(४) श्रुत के कल्याण रूप का चिन्तन-मनन करना। ......... आज जैन समाज को श्रुत के प्रचार और प्रसार की ओर बहुत ध्यान ... देने की आवश्यकता है । जैन शास्त्रों में जो उच्चकोटि का, तर्क विज्ञान सम्मत्त... ___. और कल्याणकारी तत्वज्ञान निहित है, उसका परिचय बहुत कम लोगों को .. है। शास्त्रों के लोकभाषाओं में अनुवाद भी पूरे उपलब्ध नहीं है । आधुनिक ढंग ..
के सुन्दर मूल-प्रकाशन भी नहीं मिलते हैं । जिज्ञासुजनों की प्यास बुझाने की _ . पर्याप्त सामग्री हम प्रस्तुत नहीं कर सके हैं । यह खेद की बात है । इतने सुन्दर