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.. ३२८] ... शुद्ध चारित्र के पालन के साथ वसुदेव के हृदय में अपने गुरू के प्रति . . श्रद्धाभाव था। उसने ज्ञानार्जन कर लिया। कुछ समय पश्चात् गुरुजी का स्वर्गवास होने पर वह प्राचार्य पद पर प्रतिष्ठित हो गया। शासन सूत्र उसके .. हाथ में आ गया।
उधर वसुसार की आत्मा में मिथ्यात्व का उदय हो गया। उसने एक नवीन मनगढन्त सिद्धान्त का प्राविष्कार किया। निद्रा में सब पापों की निवृति हो जाती है। इस प्रकार की प्ररूपणा करने लगा। निद्रा के समय मनुष्य न झूठ बोलता है, न चोरी करता है, अब्रह्म का सेवन करता है, न क्रोधादि करता है, अतएव सभी पापों से बच जाता है, इस प्रकार की भ्रान्त धारणा उसके मन में पैठ गई। ... ...... .. .......
वसुसार अपना अधिक से अधिक समय निद्रा में व्यतीत करने लगा और कहने लगा-सुषुप्ति से मन वचन काय की सुन्दर गुप्ति होती है । जागरण की स्थिति में योगों का संवरण नहीं होता। ज्ञानोपासना आदि सभी साधनाओं . में खटपट होती है, अतएव शयन साधना ही सर्वोतम है । अतएव में अधिक से अधिक समय निद्रा में व्यतीत करना हितकर समझता है। . .
... वसुदेव ने गुरूभक्ति के कारण गंभीर तत्वज्ञान प्रात्प किया था।
वह आचार्य पद पर आसीन हो गए थे। अतएव जिज्ञासु सन्त उन्हे घेरे रहते ..
थे। कभी कोई वाचना लेने के लिए प्राता तो कोई शंका के समाधान के लिए। .. उन्हें क्षण भर भी अवकाश न मिलता। प्रातःकाल से लेकर सोने के समय .
तक ज्ञानराधक साधु-सन्तो की भीड़ लगी रहती । मानसिक और शारीरिक श्रम के कारण वसुदेव थक कर चूर हो जाते थे।
..बात सही है, सीखा हुआ तोता बांधा जाता है, बगुले और कौए को . ....कौन पूछता है ? ज्ञानी सदा परेशान रहता है, मूर्ख निश्चिन्त रहकर मजे .. .. उठाता है । वसुसार की यही विचारधारा थी। कवि ने कहा है- . .