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३२० कोई तत्त्व नहीं है-सब कुछ अजीव ही अजीव है अर्थात् जड़ भूतों के सिवाय चेतन तत्त्व की सत्ता नहीं है। कोई दोनों तत्त्वों की पृथक् सत्ता स्वीकार ., करते हुए भी अज्ञान के कारण जीव को सही रूप में नहीं समझ पाते और अव्यक्त चेतना वाले जीवों को जीव ही नहीं समझते। ईसाइयों के मतानुसार गाय जैसे समझदार पशु में भी आत्मा नहीं है । वौद्ध आदि वृक्ष आदि वनस्पत्ति को अचेतन कहते हैं । इस थोड़े से उल्लेख से ही आप समझ सकेंगे कि जीव और अजीव की समझ में भी कितना भ्रम फैला हुआ है ! . .... ...
जीव सम्बन्धी अज्ञान का प्रभाव प्राचार पर पड़े विना नहीं रह सकता। जो जीव को जीव ही नहीं समझेगा, वह उसकी रक्षा किस प्रकार कर सकता है ? वैदिक सम्प्रदाय के त्यागी वर्गों में कोई पंचाग्नि तप कर अग्निकाय का घोर प्रारंभ करते हैं, कोई कन्द-मूल-फल-फूल खाने में तपश्चर्या मानते हैं । यह सब जीव तत्त्व को न समझने का फल है । वे जीव को अजीव समझते हैं, . . अतएव संयम के वास्तविक स्वरूप से भी. अनभिज्ञ रहते हैं। नतीजा यह होता है कि संयम के नाम पर असंयम का आचरण किया जाता है।
इससे आप समझ गए होंगे कि ज्ञान और प्राचार का अत्यन्त घनिष्ठ.. सम्बन्ध है । यही कारण है कि वीतराग भगवान् ने ज्ञान और चारित्र होनों .. को मोक्ष प्राप्ति के लिए अनिवार्य बतलाया है। ज्ञान के अभाव में चारित्र सम्यक् .. चारित्र ही नहीं हो सकता और चारित्र के अभाव में ज्ञान निष्फल ठहरता है। . ज्ञान एक दिव्य एवं प्रान्तरिक ज्योति है जिसके द्वारा मुमुक्षु का गन्तव्य पथ आलोकित होता है । जिसे यह आलोक प्राप्त नहीं है वह गति करेगा तो अंधकार में भटकने के सिवाय अन्य क्या होगा? इसी कारण मोक्षमार्ग में ... ज्ञान को प्रथम स्थान दिया गया है। शास्त्र में कहा है :: :: :: :: ......
..... नाणेण जाणइ भावे, दंसणेण य सहहे ! ........ ............... चरितग निगिण्हाइ, तवेण परिसुज्झाई