________________
[२६२
गौतम स्वामी 'लब्धितणा भण्डार' थे किन्तु उन्होंने अपनी किसी लब्धि का उपयोग लोकों को चमत्कार दिखलाने के लिए नहीं किया। किन्तु सभी साधक समान नहीं होते । चमत्कार जनक शक्ति के प्राप्त होने पर भी उसका उपयोग न करने का धैर्य विरलें साधक में ही होता है। दुर्वल हृदय मार्ग चूक जाते हैं । वे लोकैषणा के वशीभूत होकर चमत्कार दिखलाने में प्रवृत्त हो जाते ... हैं और यदि शीघ्र ही उस प्रवृत्ति से विमुख न हुए तो आत्मकल्याण के मार्ग से विमुख हो जाते हैं । सिद्धान्त का कथन है कि लब्धि के प्रयोग से संयम- . चारित्र मलीन होता है। . स्थूलभद्र महान् साधक मुनि थे, किन्तु इस समय उनके चित्त में दुर्बलता... उत्पन्न हो गई। उन्होंने विचार किया-ये भगिनी साध्वियां मेरे दर्शन के लिए . आ रही हैं। वे छोटे-मोटे अंग-उपांग श्रुत को जानकर साधना कर रही हैं . और दृष्टिवाद अंग के माहात्म्य को नहीं जानती हैं। क्यों न उन्हें उस महान् . श्रत का परिचय दिया जाय! . . ... .. ...... ... . ... - प्रायः प्रत्येक मनुष्य में अपनी महत्ता प्रदर्शित करने की अभिलाषा होती . है । स्थूलभद्र जैसे उच्चकोटि के साधक भी इससे बच नहीं पाए । ...
- विज्ञान के द्वारा आज अनेक प्रकार के आश्चर्यजनक अाविष्कार हुए हैं किन्तु यौगिक शक्ति के चमत्कारों की तुलना में वे नगण्य हैं। ..... .... प्राचीन भारतीय साहित्य भी अत्यन्त समृद्ध और परिपूर्ण था। द्वाद
शांगी में बारहवां अंग दृष्टिवाद बहुत विशाल था। खेद है कि आज वह उपलब्ध नहीं है । तथापि उसमें वर्णित विषयों का कुछ-कुछ परिचय अन्यः , शास्त्रों से मिलता है। उससे पता चलता है कि ज्ञान-विज्ञान की ऐसी कोई शाखा नहीं जिसका दृष्टिवाद में विवेचन न किया गया हो।.
भूवलय नामक ग्रन्थ के विषय में आपने सुना होगा। वह एक अद्भुत.. - ग्रन्थ है । वह अठारह भाषाओं में पढ़ा जा सकता है और- संसार की समस्त विद्याएँ उसमें समाहित हैं, ऐसा दावा किया जाता है। कुछ वर्ष पूर्व भूतपूर्व