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वीर निर्वाण
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___वर्तमान में जो धर्मशासन चल रहा है, उसके अधिपति चरम तीर्थङ्कर भगवान महावीर स्वामी हैं । शासन का माध्यम भगवान् की वह वाणी है जिसे उनके प्रधान शिष्य गणधरों ने शास्त्र का स्वरूप प्रदान किया और
स्थविर भगवन्तों ने बाद में लिपिबद्ध किया । इस शासन के संचालक सूत्रधार . शिष्य-प्रशिष्य परम्परा से होने वाले सन्त हैं। शासनपति हम सभी आत्म- कल्याण के अभिलाषियों के लिए सदा स्मरणीय हैं । अज्ञान के अनन्त-असीम । अन्धकार में भटकते हुए सांसारिक प्राणियों को सम्यग्ज्ञान का आलोक प्रदान करने वाले वही हैं, इस कृतज्ञता के कारण तथा गुणों के प्रति आदर भावना की दृष्टि से भी वे स्मरणीय हैं।
गुणों की दृष्टि से सभी तीर्थकर भगवान् समान होते हैं। अतएवं सभी समान रूप से स्मरणीय हैं। भगवान् का स्मरण एक प्रकार से अपने असली स्वरूप का स्मरण है, क्योंकि आत्मा और परमात्मा में मौलिक रूप में कोई अन्तर नहीं है । मुक्त एवं संसारी आत्मा समान स्वभाव के धारक हैं । जैसे सिद्ध भगवान् अनन्त ज्योति के पुंज हैं, अनन्त ज्ञान, दर्शन, वीर्य एवं सुख से परिपूर्ण हैं, निर्मल आत्मपरिणति वाले हैं, उसी प्रकार संसार के सब आत्मा भी हैं। कहा भी हैः
' यः परमात्मा स एवाह, योऽहं स परमस्तथा । . अहमेव मयाऽऽराध्यो, नान्यः कश्चिदिति स्थितिः।।
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