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वागरण और अपुट्ट बागरण दोनों का सिलसिला चालू था। शुभ और अशुभ कार्यों के विपाक कैसे होते हैं, यह प्ररूपणा चल रही थी।
बन्धुनो! शुभ और अशुभ को वास्तविक रूप में समझ लेना बहुत बड़ी बात है । जो अशुभ को समझ लेता है वह अशुभ की ओर प्रवृत्ति करने से रुक जाता है। काम, क्रोध आदि के कटुक परियाक यदि समझ में आजाएं तो उनकी ओर जीव का झुकाव ही नहीं हो सकता। टिमटिमाते प्रकाश में बिच्छू को देख कर कोई उसके अपर हाथ नहीं रखता, क्योंकि यह बात जानी हुई है कि बिच्छू डंक मारने वाला विर्षला जन्तु है। उसे पकड़ने और बाहर ले जाकर छोड़ने के लिए चीमटे का उपयोग किया जाता है।
पुरस्कार देने पर भी कोई सांप के बिल में हाथ नहीं डालेगा, क्योंकि सर्पदंश की भयानकता से सभी परिचित हैं । असत्य भाषण करने या अशिष्ट व्यवहार करने से पुरस्कार नहीं मिलता, फिर भी लोग ऐसा करते हैं । इसका एक मात्र प्रधान कारण यही है कि बिच्छू या सर्प के दंश से जैसी प्रत्यक्ष एवं तत्काल हानि होती है, वैसी असत्य भाषण, क्रोध आदि से प्रतीत नहीं होती। साधारण जनों की दृष्टि बहुत सीमित होती है । वे तात्कालिक हानि-लाभ को तो समझ लेते हैं, मगर भविष्य के हानि लाभ की परवाह नहीं करते। दीर्घ दृष्टि की एक नजर वर्तमान पर रहती है तो दूसरी नजर भविष्य पर भी रहती है। जिस मनुष्य ने विष के समान पाप को भयजनक समझ लिया है, उसकी पाप में प्रवृत्ति नहीं होगी। सत्य यह है कि पापाचरण का परिणाम विष से असंख्यगुणित हानिकारक और भयप्रद है।
नादान बच्चे को, माता-पिता को प्राग, बिच्छू, सांप से डराना पड़ता है, बड़े बच्चे को डराना पहीं पड़ता, क्योंकि वह उनसे होने वाले अनर्थं से परिचित है । इसी प्रकार धार्मिक क्षेत्र में पाप-पुण्य को समझ लेने से ज्ञानी पुरुष पाप से स्वयं वचता रहता है । वह उसे जहर से भी ज्यादा संकटजनक मानता है । पाप, कामना और विषयलोलुपता का जहर भव-भव में शोचनीय