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२५८] को दीर्घता प्राप्त हो सकती है । इस प्रकार सामायिक में प्राणायाम भी ही जाता है। ... महावीर स्वामी ने साड़े बारह वर्ष पर्यन्त तीव्र तपश्चर्या करके वीतराग दशा प्राप्त की और सामायिक का साक्षात्कार किया। उन्होंने संसार को यह संदेश दिया कि यदि शान्ति, स्थिरता और विमलता प्राप्त करनी है तो सामायिक की साधना करो । वीतरागता के सर्वोच्च शिखर पर आसीन अर्हन्तों ने प्रकट किया है कि जब तक सामायिक का साक्षात्कार नहीं किया जाता जब तक सामायिक साधना कई बार आती है और चली भी जाती है, चाहे साधक श्रमणोपासक हो अथवा श्रमण हो ।
(३) कायदुप्पणिहाणे-सामायिक का तीसरा दूषण शरीर का दुष्प्रणिधान हैं। .. शरीर के अंग-प्रत्यंग की चेष्टा सामायिक में वाधक न हो, इसके लिए। • यह आवश्यक है कि इन्द्रियों एवं शरीर द्वारा अयतना का व्यवहार न हो। सामायिक की निर्दोष साधना के लिए यह अपेक्षित है। इधर-उधर घूमना, विना देखे चलना, पैरों को धमधमाते हुए चलना, रात्रि में बिना पूजे चलना, बिना देखे हाथ-पैर फैलाना आदि काय के दुष्प्रणिधान में अन्तर्गत है। मन, वचन और काय का दुष्प्रणिधान होने पर सामायिक का वास्तविक आनन्द प्राप्त नहीं होता। .
.. किसी गाँव में एक बुढ़िया थी। पुत्र आदि परिवार के होने पर भी 'स्नेहवशात् वेचारी रात-दिन घर-गृहस्थी के कार्य में पचती रहती थी। सौभाग्य से उस गाँव में एक महात्मा जा पहुँचे । बुढ़िया के पुत्र बहुत शिष्ट और साधुसेवी थें । वे महात्मा की सेवा में पहुँच कर और बहुत आग्रह करके अपने घर उन्हें लाए । महात्मा से निवेदन किया-महाराज, हमारी माता वृद्धावस्था में भी कोई धर्मकृत्य नहीं करती। उन्हें यदि कुछ प्रेरणा करें और नियम दिला दें तो उनका कल्याण होगा। ....... :: .. : .:. :::