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। २५७ को अन्तिम अवस्था समाधि है। समाधि-अवस्था को प्राप्त करने के लिए , सामायिक व्रत का अभ्यास आवश्यक हैं ।
सामायिक व्रत के स्वरूप पर गहराई से विचार करेंगे तो प्रतीत होगा । कि इसमें योगांगों का सहज ही समावेश हो नाता है। योग का प्रथम अंग यम ... हैं। यम का अर्थ है. अहिंसा प्रादि व्रत । कहाँ भी है-'अंहिसा सत्यास्तेय ब्रह्मचर्चा-परिग्रहाः यमाः । सामायिक में भी हिंसा, असत्य, चौर्य, कुशील और ममत्व का त्याग किया जाता है । इस प्रकार सामायिक में योग के प्रथम अंक का अनायास ही अन्तर्भाव हो जाता हैं। .. ... ... ... ... ... ..
___ सामायिक में प्रभुस्मरण, स्वाध्याय आदि का अभ्यास किया जाता है जो योग में नियम नामक दूसरा अंग है। :.. ::
सामायिक के समय शारीरिक चेष्टाओं का गोपन करके स्थिर एक आसन से साधना की जाती है । चलासन और कुप्रासन सामायिक के दोष माने
गए हैं। अगर कोई पद्मासन या वज्रासन आदि से लम्बे काल तक न बैठ सके 1: तो किसी भी सुखद एवं समाधिजनक प्रासन में बैठे किन्तु स्थिर होकर बैठे।
पलाठी प्रासन याँ उत्कुटुक प्रासन से भी बैठा जा सकता है। किन्तु बिना कारण बार-बार प्रासन न बंदलते हुए स्थिर बैठना चाहिये। . . : ... - योगाचार्य ने योग के ८४ प्रासन बतलाए हैं. किन्तु कौन किस आसन का प्रयोग करके साधना करे, इस सम्बन्ध में किसी प्रकार का आग्रह न रखते हुए. 'सुखासनम्' के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है । जिस आसन से सुखपूर्वक बेठा जाय और जिसके प्रयोग से चित्त में शान्ति रहे वही उपयुक्त प्रासन है। रुग्णावस्था में जब बैठने की शक्ति न हो तो दण्डासन से लेटकर भी साधना कर सकते हैं । इस प्रकारः आसन के अभ्यास से योग का तीसरा अंग आ जाता है। .......... ... ... ......... .:::. .. . .;:: :: : : ध्यान में लोगस्स सूत्रं आदि को चिन्तन बतलाया गया है। यदि उसमें सांस को विना तोड़े धीरे-धीरे स्मरण को बढ़ाया जाय तो अनायास ही प्राण