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[ २५३ के कारण तीव्र कर्म बांध लेता है जबकि साधना सम्पन्न पुरुष सरस भोजन करता हुआ भी अपनी अनाशक्ति के कारण उससे बचा रहता है। . .
साधना शून्य मनुष्य के प्रत्येक कार्य-कलाप में पाशक्ति का विष बुला रहता है, साधनाशील उन्हीं कार्यों को अनाशक्त भाव से करता हुआ उनमें . वीतरागता का अमृत भर देता है ।
अध्यात्म साधना का अर्थात् राग-द्वेष की वृत्ति का परित्यागः करकेसमभाव जागृत करने का यह महत्व कम नहीं है और यही साधक के जीवन को .. निर्मल और उच्च बनाने का कारण बनता है ।
आज वृत्तों की साधना करने वाले थोड़े ही दिखाई देते हैं, इसका कारण यह है कि लोग साधना के महत्त्व को ठीक तरह समझ नहीं पाए हैं और इसी कारण वे साधना के मार्ग में प्रवृत्त नहीं हो रहे हैं।
भूतकाल और वर्तमान काल का इतिहास देखने में यह बात प्रमाणित होती है कि जिसने साधना को जीवन में उतार लिया. उसने अपना यह लोक और परलोक सुधार लिया।
गृहस्थ आनन्द ने प्रभु महावीर के चरणों में पहुँच कर बारह व्रत अंगीकार किये और अपने जीवन को साधना के मार्ग में लगा दिया । साधारण ऊपरी दृष्टि से भले ही यह दिखाई न दे कि उसके जीवन में क्या परिवर्तन प्राया, मगर उसके आन्तरिक जीवन में आध्यात्मिकता की ज्योति जगमगा गई। यही कारण है कि आनन्द सभी अतिचारों का परित्याग करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ हो जाता है।
__ जो साधक भोगोपभोग के साधनों के विषय में अपने मन को नियंत्रित कर लेता है और उनकी सीमा निर्धारित कर लेता है, वह मानसिक सन्तुलन को प्राप्त करके सामायिक की साधना में तत्पर हो जाता है । संयम की साधना को विकसित करना उसके जीवन का लक्ष्य बन जाता है ।