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२४४] बारहों मास बनते रहते हैं और जव आवश्यकता हो तभी सुलभ हो सकते हैं। फिर भी लोग संदूक भर कर कपड़े संग्रह करते और जूते इतने अधिक कि सजा कर रख दिये जाएं तो मोची की एक खासी दुकान बन जाय; यह भोगोपभोग के साधनों का वृथा संग्रह निरर्थक प्रारम्भ और परिग्रह का कारण है ।
. कई बार व्यापारिक दृष्टि से भी वस्तुओं का संग्रह किया जाता है । खाद्या. न्नों का संग्रह भी किया जाता है। व्यापारी वर्ग के लिए एक सीमा तक यह संग्रह वृति क्षम्य हो सकती हैं, पर सीमा का उल्लंघन करके किये जाने वाले संग्रह से अनेक अनर्थ उत्पन्न हो जाते हैं। किसी वर्ग को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह जो भी व्यापार धन्धा करता है, वह समाज एवं देश को हानिकारक नहीं होना चाहिए । आज इस देश में अनाज पर्याप्त नहीं उत्पन्न होता और विदेशों से मंगाकर जनता की श्रावश्यक्ता की पूर्ति की जाती है । अतएव ऐसे भी अवसर पाते हैं जब अनाज की कमी महसूस हं ने लगती है । उस समय अनाज के व्यापारी अगर अपने गोदामों को वन्द कर दें, प्रजा के अन्नाभाव जनित संकट से लाभ उठाने का प्रयत्न करें और लोगों को भूखा मरते देख कर भी न पसीजें तो यह महान् अपराध है, क्र रता है । यह व्यापारिक नीति नहीं । पदार्थ की रमणीकता को देखकर अनावश्यक रूप से उसका संग्रह कर लेना और भोगोपभोग की सीमा को बढ़ाना प्रारम्भ की वृद्धि करना है, चाहे वह खाद्य पदार्थ हो, वस्त्र हो या औषध आदि हो।
.. सूती वस्त्रों से क्या काम नहीं चल सकता ? करोड़ों मनुष्य ऐसे हैं जिन्हें रेशमी और ऊनी वस्त्र प्राप्त नहीं होते ? क्या वे जीवित नहीं रहते ? शीत और गर्मी से उनके शरीर की रक्षा नहीं होती ? उनकी लज्जा की रक्षा नहीं होती ? वीमारी होने पर साधारण अहिंसक औषधों से उपचार होता रहा है। जब एलोपैथिक दवाओं का आविष्कार नहीं हुआ था तब एक से एक बढ़ कर प्रभावोत्पादक औषधं इस देश में प्रचलित थीं। उनसे चिकित्सा होती थी। उस समय के लोग आज की अपेक्षा अधिक दीर्घजीवी होते थे। किन्तु आज घोर हिंसाकारी औषधों का प्रचार बढ़ता जा रहा है, साथ ही