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[ २३७/ घोर अमंगल का कारण बन जाती है। आये दिन समाचार पत्रों में ऐसे समा चार छपते रहते हैं कि रुपया-पैसा के लिए श्रमुक की हत्या कर दी गई ! ' यों: भी बाह्य लक्ष्मी सदा चिन्ता और प्राकुलता ही उत्पन्न करती है । इसके विपरीत ज्ञान रूपी लक्ष्मी से कभी अमंगल होने की संभावना नहीं रहती । वही - इस लोक में तथा परलोक में एकान्त मंगल ही उत्पन्न करती है !
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आचार्य भद्रबाहु ने ज्ञान की ज्योति को जागृत रखने के लिए श्रुत की सात वाचनाएं देने का वचन दिया । स्थूलभद्र के नेतृत्व में साधुगरण सच्ची - लक्ष्मी पूजा के हेतु नेपाल की तराई में भद्रबाहु के पास पहुंचे ।
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भद्रबाहु ने, जैसा कि कहा जा चुका है, सात वाचनाएं देने के लिए समय निकाला, परन्तु अभ्यास हेतु गये मुनियों को इससे सन्तोष नहीं हुआ. उन्हें ऐसा लंगा कि हमारा बहुत समय व्यर्थ जा रहा हैं । कुछ दिन यों ही सन्तोष में व्यतीत हो गए । तत्पश्चात् उन अभ्यासार्थी मुनियों ने वापिस अपने गुरु की सेवा में जाने का निश्चय किया । भद्रबाहु स्वामी के सामने अपनी इच्छा प्रकट भी कर दी । स्वामीजी ने जाने की अनुमति दे दी। वे वापिस चले गए । किन्तु स्थूलभद्र उनमें एक विशिष्ठ जिज्ञासु और अराधक थे, वे भद्रबाहु स्वामी की ही सेवा में रहे ।
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. अभ्यास करने वालों में प्रायः अधीरता देखी जाती है । वे चाहते हैं कि . थोड़ े ही दिनों में जैसे तेसे ग्रन्थों को पढ़ना समाप्त कर दें और विद्वान् बन जाएं। मगर उनकी अधीरता हानिजनक हेती है। ज्ञान प्राप्ति के लिए समुचित समय और श्रम देना आवश्यक है । गुरु से जो सीखा जाता है, उसे सुनते जाना ही प्रर्याप्त नहीं है । किसी शास्त्र को आदि से अन्त तक एकबार पढ़ लेना अलग बात है और उसे पचा लेना दूसरी बात है । शिक्षार्थी के लिए आवश्यक है कि वह शिक्षक से जो सीखे उसे हृदय में बद्धमूल करले और इस प्रकार श्रात्मज्ञात करे कि उसकी धारणा बनी रहे । उस पर बार-बार विचार करे, चिन्तन करे । शब्दार्थ एवं भावार्थ को अच्छी तरह याद करे । ऐसी तैयारी करे कि समय आने पर दूसरों को सिखा भी सके । चिन्तन-मनन के
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