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२३६ ] शील, सदाचार आदि सभी सद्गुण उसके समक्ष फीके पड़ गए हैं। लक्ष्मी को उचित से अधिक समादर लोगों ने दे दिया है, उससे व्यक्ति यह सोचता है कि लक्ष्मी न होगी तो हमें कोई महत्व नहीं मिलेगा। इस प्रकार की विचारधारा से ज्ञान का स्थान गौण हो गया है।
लक्ष्मी दो प्रकार की होती है अान्तरिक और बाह्य । आन्तरिक लक्ष्मी आत्मिक सम्पत्ति है और बाद्य लक्ष्मी भौतिक होती है। सच्ची और सदा साथ देने वाली लक्ष्मी आध्यात्मिक विभूति ही हो सकती है। मगर आज की जनता उसे भूलकर बाह्य लक्ष्मी की पूजा में ही अपना कल्याण समझ रही है । इस प्रकार एकान्त बहिरंग दृष्टि के कारण अनेक अवांछनीय परिस्थितियां खड़ी हो गई हैं।
. वहि प्टि के कारण कभी-कभी उत्सव व मंगल के वदले अमंगल का कारण बन जाता है। उत्सव के जोग में आकर लाखों जीवों की हत्या करना मंगल में दंगल करना है-अमंगल को आमंत्रण देने के समान है । हिंसाकारी साधनों को अपनाने से मंगल अमंगल बन जाता है। फटाके आदि जलाने से लोग जल मरते हैं, मकानों और दुकानों में आग लग जाती है । कहीं-कहीं तो. इतनी उद्यम प्रवृत्तियां बढ़ जाती हैं कि उन्हें दवाने के लिए पुलिस का प्रबन्ध करना पड़ता है। पर्व के पीछे रही हुई भावना को जो भूल जाते हैं वे मानों आत्मा को भूलकर शरीर को पूजा करते हैं। इस अज्ञान एवं भ्रान्त धारणा के कारण व्यक्तिगत तथा सामाजिक हानियां होती हैं।
पढ़ना, पढ़ाना, सत्साहित्य का निर्माण करना, संवर्धन करना और . प्रचार करना आदि ज्ञान की पूजा है । वह अान्तरिक लक्ष्मी की पूजा है। : । दुख की लक्ष्मी विवेकपूर्ण बोलना है, सुपात्र एवं सुशीला नारी गृह की लक्ष्मी .. हैं, ज्ञान प्रात्मा की लक्ष्मी है । दान धन की लक्ष्मी है।
. वास्तव में जान को आन्तरिक लक्ष्मी का जो स्वरूप प्रदान किया गया है, उसमें तथ्य है । कहना चाहिए कि वह सच्ची लक्ष्मी है । रुपया, पैसा, नोट, वन रूप बाह्य लक्ष्मी कभी अलक्ष्मी का रूप धारण कर लेती हैं। वह . .