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उसके मुख से किकलने वाले थोड़े-से बोल ही उसकी वास्तविकता को प्रकट कर देते हैं । वाणी मनुष्य के मनुष्यत्व की कसौटी है। कहा गया है
ना नर गज़ा तें तोलिए, ना नर लीजिए तोल, .
परशुराम नर नार का, बोल बोल में बोल । बचन के द्वारा ही समझ लिया जाता है कि मनुष्य कैसा है ? इसके संस्कार और कुल कैसे हैं ?
• एक ठाकुर साहब की सवारी किसी गांव में होकर निकली । एक -सूरदास अपने चबूतरे पर बैठा था । ठाकुर साहब ने कहा - महाराज सूरदासजी, राम-राम। .. सूरदास--राजा महाराजा, राम-राम .
दूसरे कामदार पीछे-पीछे निकले। उनके अभिवादन में सूरदास ने कहा--कामदार, राम राम ।
उनके बाद दरोगा निकले तो सूरदास बोले- दरोगा, राम-राम । अन्त में नौकर आये। उन्होंने सूरदास का अभिवादन-किया-अन्धे, राम-राम । सूरदास ने उत्तर में कहा-गोला, राम-राम । . . . सूरदास देख नहीं सकता था कि पथिकों में कौन ठाकुर और ः कौन . चाकर है, फिर भी वह उनके अभिवादन करने वाले वचनों को सुनकर ही समझ गया कि इनमें कौन-क्या है ?
वास्तव में सभ्य, कुलीन और समझदार व्यक्ति शिष्टतापूर्ण भाषा का प्रयोग करता है जब कि अोछा आदमी ओछी जबान का उपयोग करता है।
. जो पुरुष व्रतों को अंगीकार करता है, वह अपनी वाणी का दुरुपयोग न करके सदुपयोग ही करता है । व्रती की नीति यह नहीं होती कि पहले गंदगी को बढ़ने दे और फिर उसकी सफाई करे । वह गंदगी से पहले से ही दूर रहता
हैं नीतिकार ने कहा है-. .
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