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[ १६३ भ्रंमं वशं शंका की थी । आपके कथन के मर्म को समझ नहीं सका था। अपने इस अनुचित कृत्य के लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ।
__ मुनि के अन्तर से ध्वनि निकली-वह महापुरुष वास्तव में धन्य है जो काम-राग को जीत लेता है।
राग को जीत कर जीवन को सफल बनाने से ही मनुष्य का यह लोक .. __और परलोक कल्याणमय बनता है।
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