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[२] अस्तेय के अतिचार ज्ञानियों के अन्तः करण में संसार के लघु से लघु और बड़े से बड़े जीवों के प्रति करुणा और मंगल कामना रहती है । उनका हृदय माता के हृदय के समान वात्सल्य से परिपूर्ण होता है । ज्ञानी और माता के हृदय के वात्सल्य में यदि अन्तर है तो यही कि माता का वात्सल्य खण्डित होता है-अपनी सन्तति तक सीमित रहता है और उसमें ज्ञान अथवा अज्ञान रूप में स्वार्थ की भावना का सम्मिश्रण होता है, किन्तु ज्ञानी के हृदय के वात्सल्य में यह दोनों चीजें नहीं होती। उनका वात्सल्य विश्वव्यापी होता है । वे जगत् के प्रत्येक छोटे-बड़े, परिचित, अपरिचित उपकारक-अपकारक, विकसित-अविकसित या अर्धविकसित प्राणी पर समान वात्सल्य रखते हैं । उसमें किसी भी प्रकार कास्वार्थ नहीं होता।
___ जगत का प्रत्येक जीव ज्ञानी पुरुष का बन्धु है । जीवन में जब पूर्ण रूप से बन्धुभाव उदित हो जाता है तो संघर्ष जैसी कोई स्थिति नहीं रहती, वैर-विरोध के लिए कोई अवकाश नहीं रह जाता । यही कारण है कि ज्ञानी पुरुष के हृदय रूपी हिमालय से करुणा, वात्सल्य और प्रम की सहस्र-सहस्त्र धाराएं प्रवाहित होती रहती हैं और वे प्रत्येक जीव धारी को शीतलता और शान्ति से प्राप्लावित करती है । इससे ज्ञानी का जीवन भी भारी नहीं, हल्का बनता है।
ज्ञानी अपने लिए जो जीवन-नीति निर्धारित करते हैं, वही प्रत्येक मावन के लिए योग्य और उचित नीति है। प्रत्येक मनुष्य सब के प्रति प्रीति और अहिंसा की भावना रखकर जीवन यात्रा चला सकता हैं । प्राधात-प्रत्या