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बच जाय' अन्यथा कैंसर तो प्राण लेकर ही पिण्ड़ छोड़ता है । अनुभवी लोगों का कथन है कि पचहत्तर प्रतिशत लोगों को तमाखू के सेवन से यह बीमारी उत्पन्न होती है ।
आखिर मनुष्य का विवेक इतना क्षीण कैसे हो गया है कि वह अपने जीवन और प्राणों की भी परवाह न करके जहरिले पदार्थों का सेवन करने पर उतारू हो गया है ! अपने हाथों अपने पांव पर कुल्हाड़ा मारने वाला क्या बुद्धिमान् कहा जा सकता है ! यह एक प्रकार का श्रात्मघात है ।
पाश्चात्य डाक्टरों ने तमाखू के सेवन से होने वाली हानियों का अनुभव किया है और लोगों को सावधान किया है । पर इस देश के लोग कब इस विनाश कारी वस्तु के चंगुल मे छुटकारा पाएंगे !
आपको शायद विदित हो कि तमाखू भारतीय वस्तु नहीं है । प्राचीन काल में इसे भारतवासी जानते तक नहीं थे । यह विदेशों की जहरीली सौगात है और जब विदेशी लोग इसका परित्याग करने के लिए आवाज बुलन्द कर रहे हैं तब भारत में इसका प्रचार बढ़ता जा रहा है । ग्राज सैंकड़ों प्रकार की नयी-नयी छाप की बीड़ियां प्रचलित हो रही हैं ।
भारत के व्यापारी जनता के स्वास्थ्य की उपेक्षा करके प्रायः पैसा कमाने की वृत्ति रखते हैं । अन्य देशों में तो देश से लिए हानिकारक पदार्थों का विज्ञापन भी समाचार पत्रों में नहीं छापा जाता, मगर यहां ऐसे आकर्षक विज्ञापन छापे जाते हैं कि पढ़ने वाले का मन उसके सेवन के लिए ललचा नाय तो कोई आश्चर्य की बात नहीं ।
जो व्यापारी बीड़ी, जर्दा, सिगरेट, सुंघनी आदि का व्यापार करते हैं वे जहर फैलाने का धन्धा करते हैं । समभादार व्यापारी को इस धन्धे से बचना चाहिये ।
जनता का दुर्भाग्य हैं कि ग्राज बीड़ी सिगरेट आदि की बिक्री एक साधारण बात समझी जाती । कोई वस्तु जब समाज में निन्दनीय नहीं गिनी जाती तो उसके विक्रय और ले जाने लाने यादि की खुली छूट मिल जाती