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[१५७ गया कि ये साध्वियां भगवान महावीर के वचनों पर विश्वास नहीं करती
और जमालि के मत को मानती हैं । उसने सोचा-संघ में अनक्य होने से शासन को धक्का लगता है । तीर्थ कर का शासन संघ सहारे ही चलता है और शासन चलता है तो अनेक भव्य जीव उसका आश्रय लेकर अपना प्रात्मकल्यारा करते हैं । अतएव शासन की उन्नति के लिए संघ को समर्थ होना चाहिए । संघ की अनेकता को मिटाने का प्रयास करना प्रत्येक शासनभक्त का प्रथम कर्तव्य है । इसके अतिरिक्त यह साध्वियां मिथ्यात्व के चक्कर में पड़ी हैं । अतः इनका उद्धार करना भी महान् लाभ है।
इस प्रकार की प्रशस्त भावना कुंभकार के हृदय में उत्पन्न हुई ! भावना ने प्रेरणा पैदा की और प्रेरणा ने युक्ति सुझाई । हृदय का बल उसके पास था। तर्कबल उसे प्राप्त नहीं था। तर्क के लिए उर्वर मस्तिष्क चाहिए। मगर तर्कबल की अपेक्षा भावना का बल प्रवल होता है।
___ कुम्भकार ने चादर के छ र पर आग की एक चिनगारी डाल दी । चिनगारी ने अपना कार्य प्रारम्भ किया। वह चादर को जलाने लगी। चहर का एक कोना जल गया साध्वियों ने चादर जलते देखकर कुम्भकार से कहा-देवानु-प्रिय ! तुमने यह चादर जला दिया ? -
... कुम्भकार को अपनी बात कहने का मौका मिला । उसने कहा-बड़े विस्मय की बात है कि आप क्रियमाण कार्य को कृत कहना मिथ्या समझती हैं और जलते हुए चादर के एक छोर को 'चादर जला दिया' कहती हैं । आपके मन्तव्य के अनुसार तो चादर जली नहीं है । फिर आप मिथ्या भाषरण कैसे करती हैं ? .
साध्वियां समझ गई। इस युक्ति से उन्हें अपने ममं का पता चल गया।
सुदर्शना ने कहा-भव्य, हम आपके प्रति अंत्यन्त कृतज्ञ हैं । आपने हमारी मिथ्या धारणा में संशोधन कर दिया है । अब तक हमने असत्य की श्रद्धा