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[१३६ सफलता नहीं प्राप्त हो सकती, यही नहीं वरन् पूर्व प्राप्त साधना की सम्पत्ति भी वह गंवा बैठता है। किसी धनधान् अथधा अर्थी द्वारा कठिन परिश्रम ... करके प्राप्त किया हुआ धन यदि चोर चुरा ले या गुम हो जाय तो उसे कितनी मार्मिक वेदना होती है ? वह व्यवहार में बहुत संभल कर चलता है, .. फिर भी कदाचित् असावधान हो जाता है तो भयानक हानि उठाता है। इस. ... प्रकार जब थोड़ी-सी असावधानी भी व्यवहार में घातक है तो जीवन की हानि ... कितनी बड़ी हानि नहीं कहलाएगी!
एक आदमी प्रवास का घोर कष्ट उठाकर और रात-दिन एक करके, .. कठिन परिश्रम करके, धन उपार्जित करके ला रहा हो.और मार्ग में लुट जाए तो उसके हृदय में तीव्र विषाद होगा । बाल-बच्चों चाला होगा तो उसे गृहस्थी . की गाड़ी चलाने में कष्ट होगा। अगर वह कोई भिक्षुक है और उसने दार-परिग्रह नहीं किया है तो भी माल लुट जाने के दुःख से वह बच नहीं सकता।
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सिंह गुफावासी मुनि का रत्नकंबल लुट गया तो उनको बहुत दुःख हुआ ! उस रत्नकंबल के साथ उनकी कई भावनाएं जुड़ी हुई थीं। अतएंव उनके हृदय में कितनी व्याकुलता उत्पन्न हुई होगी, इसका अनुमान कोई भुक्तः । भोगी ही कर सकता है। इस मर्मबंधिनी. चोट से उन्हें जो आत्मग्लानि हुई उसे भगवान् सर्वश ही जान सकते हैं। मुनि के मन में कहा-ल्पाकोशा कंबल : . की प्रतीक्षा कर रही होगी। उसके समक्ष मैंने बड़े दर्ष के साथ अपने पुरुषार्थ की हींग मारी थी । वह मेरी राह देख रही होगी। मैं उसके सामने खाली हाथ : कमे जाऊंगा ? रत्नकंबल मांगने पर उसे क्या उतर दूंगा? मार्ग में लुट जाने । की बात पर क्या उसे विश्वास होगा ? क्या यह स्थिति मेरे लिए अपमानजनक । नहीं है ? तो अब क्या करना चाहिए ? · ...... .... ::: .. ... :
'चिन्ता में व्यग्र मुनि कुछ समय तक कोई निर्णय नहीं कर सके । भांति.. • भांति के विचार चित्त में उत्पन्न हुए और विनष्ट हुए। वह असमंजस में पड़ गए । संयम की विशिष्ट साधना के उद्देश्य से निकले साधक की ऐसी दयनीय