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. १३८] . भी करता है, कृषि भी करता है, मोटर-सर्विस और सिनेमा भी. चलाता है तो चारों दिशाओं में उसके लालच का विस्तार होगा। लालच में पड़कर वह असत्य भाषण करेगा, अदत्त का ग्रहण करेगा पीर न जाने कौन-कौन से पाप करेगा! पाप का. बाप लोभः और पार की मां कुमति है। समस्त पापों को अंकुरित करना, जन्म देना और विस्तार करना लोभ का काम है, किन्तु कुति का सहयोग न हो तो पापों का विस्तार नहीं हो सकता। पाप का विषेला वीज कुमति रूपी क्षेत्र में ही फलता-फूलता है। . सन्तोष के बिना शान्ति और सुख नहीं मिलता और विरतिभाव के बिना सन्तोप नहीं मिलता। लोभ-लालच को जीतने का उपाय सन्तोष ही है।
'लोहं संतोसो जिरणे' अर्थात् लोभ को सन्तोष से जीतना चाहिए, यह अनुभवी .. महापुरुषों का वचन है।
. . . . ज्ञान अपने आप में अत्यन्त उपयोगी सद्गुण है किन्तु उसकी उपयोगिता विरतिभाव प्राप्त करने में है । जितने भी अध्यात्म-मार्ग के पथिक महापुरुष हुए हैं, उन्होंने हिंसा कुशील प्रादि से विमुख हो कर कषायों का भी निग्रह किया। ये अान्तरिक पाप शीत्र पकड़ में नहीं आते। बिजली को पकड़ने के लिए विशिष्ट साधन का उपयोग करना होता है। उससे बचने के लिए रवर, लकड़ी आदि का सहारा लेना पड़ता है। इसी प्रकार क्रोधादि रूप विजली से बचने के लिए विरतिभाव का आश्रय लेना चाहिए। . . . जो विवेकशील साधक विरतिभाव के बाधक कारणों से बचता है, वही : साधना में अग्रसर हो सकता है । विसति के बाधक कारण अतिशय लोभ मोह .. श्रादि विकार हैं और उन विकारों से उतपन्न होने वाले महान् श्रारम्भ-परिग्रह हैं। इस सिलसिले में कर्मादानों की चर्चा चल रही है। तीन कर्मादानों का विवेचन पहले किया जा चुका है।
हिमालय के दुर्गम भागों में साधक भले ही न गड़बड़ाए, किन्तु प्रमाद और कपाय यदि उसके जीवन में प्रवेश कर जावें और वह उनका शिकार हो .जाए तो गड़बड़ पैदा हुए बिना नहीं रहती। ऐसी स्थिति में उसे कोई नवीन
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