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. . [११७. उसके सामने एक ही लक्ष्य रहता है कि अधिक से अधिक वृक्षों को काट कर कैसे अधिक से अधिक धन कमाया जाय।. . ..... ... ..
- एक समय था जब फलदार वृक्षों को काटना कानूनी अपराध समझा. जाता था। आज भी राष्ट्र नायक नेहरू जी निर्देश करते हैं कि वृक्षों का काटना अत्यन्त हानिकारक है । वे कहते हैं-जब तक दस वृक्ष नये न लगा दिए जाएँ तब तक एक वृक्ष न काटा जाए । मगर बड़े-बड़े साफ किये जा रहे हैं जिससे ईधन तथा गृह निर्माण के लिए भी लकड़ी मिलना मुश्किल हो जाता है।
भारतीय संस्कृति में वट, पीपल, नीम आदि वृक्षों के काटने में भय बतलाया गया है । संभवतः इस विधान के पीछे इन विशालकाय वृक्षों की रक्षा ..... करने का ही ध्येय रहा हो । साधारण जनता ऐसे वृक्षों को काटना अनिष्टकारक समझती आई है, परन्तु अब यह धारणा परिवर्तित होती जा रही है।
__जव वृक्षों के सम्बन्ध में भारतीय जनता का यह दृष्टिकोण था तो ' पशुओं की बलि की बात कहाँ तक संगत हो सकती है ?
वनस्पति की गणना स्थावर जीवों में की गई है, किन्तु अन्य स्थावर . जीवों की अपेक्षा वनस्पति में चेतना का अंश किंचित अधिक विकसितः प्रतीत होता है । अतएव उसकी रक्षा की ओर इतर लोगों का भी ध्यान आकृष्ट हुआ हो, यह स्वाभाविक है । धार्मिक दृष्टि से वृक्षों का काटना पाप है ही, : मगर लौकिक दृष्टि से देखा जाए तो भी उनका काटना हानिकारक है। वृक्षों. को सुरक्षित रखने से छाया, फल फूल आदि की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त जहाँ वृक्षों की बहुतायत होती है वहाँ वर्षा भी अधिक होती है, जिससे फसल में वृद्धि होती है । इस प्रकार धार्मिक और लौकिक दोनों दृष्टियों से वृक्षों का : उच्छेदन करना अनुचित है, अधर्म है ।
जीव-जगत् पर वृक्ष का कितना महान् उपकार है ! एक-एक वृक्ष ... हजार-हजार प्राणियों का पालन करता है । उससे पशुओं, पक्षियों और मानवों : का-सभी का रक्षण और पालन होता है । अतएव जब वृक्ष हमारा रक्षक है तो हमारे द्वारा भी वह रक्षणीय होना चाहिए । पुराने जमाने के लोग पुराने और.