________________
मगर लोगों को प्राकृतिक चिकित्सा पर आज भरोसा नहीं रहा है। वे अपवित्र एलोपैथिक औषधों का सेवन करके अपना धर्म विनष्ट करते हैं। शास्त्र की दृष्टि से समस्त धान्य औषधि की कोटि में आते हैं। यदि विधिपूर्वक इनका सेवन किया जाय तो वे स्वास्थ्य प्रद सिद्ध होते हैं । हाँ, प्रविधि से सेवन करने पर अवश्य रोगोत्पादक हो सकते हैं।
व्रतमय जीवन व्यतीत करने वाले को तुच्छऔषध का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि उसमें खाद्य अंश कम होता है और फैंकने योग्य अंश अधिक होता है।
महावीर स्वामी का कथन है-हे मानव! तू वृथा पाप के भार को क्यों बढ़ाता है ? पदार्थों का सेवन इस प्रकार कर कि तेरा काम चले और वस्तु का विनाश न हो। भोगलालसा पर अंकुश लगाएगा तो कर्म बन्ध पर स्वतः अंकुश लग जाएगा जीवन बनाना है, जीवन से कुछ महत्वपूर्ण लाभ उठाना है और आत्म साधना की यात्रा में बिना टकराए लक्ष्य पर पहुँचना है तो भोग और उपभोग की सामग्री पर विवेकपूर्ण नियंत्रण करना आवश्यक है। यदि ठीक तरह से यह नियंत्रण स्थापित हो जाय और जीवन में संयम
और सादगी आ जाय तो बड़े-बड़े राक्षसी कल-कारखानों की आवश्यकता ही न हो । इस प्रकार के कारखानों की स्थापना महा तृष्णा की बदौलन होती है। उनमें कितने ही लोगों की हत्या और शोषण होता है, कितने ही गरीबों के हाथ-पैर कटते हैं और न जाने कितने लोगों की आजीविका नष्ट होती .. है । हजारों मनुष्य अपने हाथों से जो निर्माण करते हैं, उसे एक बड़ा कार'खाना थोड़े-से लोगों की सहायता से कर डालता है। परिणामस्वरूप बहुत से लोग बेकार और बेरोजगार फिरते हैं उनके पास कोई आजीविका नहीं। जिन देशों की आबादी अल्प संख्यक हो वहाँ कल-कारखानों की उपयोगिता समझ में भी आ सकती है किन्तु जिस देश में इतनी विपुल जनसंख्या हो और वह निरन्तर बढ़ती ही जा रही हो, वहाँ यंत्रों से काम लेना और मानव शक्ति को व्यर्थ बना देना बुद्धिमत्ता नहीं है । धार्मिक दृष्टि से भी यह महारंभ है ।