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तीनों मुनि सोचने लगे-अगला चातुर्मास्य हम लोग वेश्या के घर करेंगे और वहीं ध्यान लगा कर गुरु महाराज से प्रशंसा प्राप्त करेंगे।
शेर की गुफा, सर्प की बामी और कुए की पाल पर रहने वाले मुनि काम-विजय की दुष्करता को नहीं समझते थे। उन्हें खयाल नहीं पाया कि काम-विजय संसार में सब से बड़ी विजय है और जो काम को जीत लेता है वह क्रोध, मान, माया, लोभ और मोह को अनायास ही जीत लेता है। काम को जीतने के लिए अपनी मनोवृत्ति को पूरी तरह वशीभूत करना पड़ता है और निरन्तर मन की चौकसी रखनी पड़ती है । तनिक देर के प्रमाद से भी काम विजय के लिए की जाने वाली चिर-साधना नष्ट हो जाती है । ब्रह्मा, विष्णु,
और महेश जैसे तथा रावण जैसे बली राजाओं को भी जो जीत सकता है, उस काम को जीतना क्या साधारण बात है ? उसके लिए बड़ी तपस्या चाहिए । मन को मेरू के समान अचल बनाना होता है और अन्तःस्तल के किसी भी कोने में मोह या राग न रह जाए, इस बात की सावधानी वरतनी पड़ती है । आग पत्थर के फर्श पर गिर कर बुझ जाती हैं और घास की गंजी में गिर कर सहस्रों ज्वालाओं के रूप में प्रज्वलित हो उठती है। काम विजेता को अपना . हृदय पत्थर के समान मजबूत बनाना पड़ता है।
स्थूलभद्र ने अपने हृदय को पूरी तरह साध लिया था। काम की गहरी घुसी हुई वृत्ति का उन्मूलन कर दिया था। अतः उनकी विजय महान् थी। इस विजय के महत्व को आवेग के कारण अन्य तीन मुनि नहीं समझ
सके।
शीतकाल चल रहा था। तीनों मुनियों में इन दिनों कुछ विशेष घनिष्टता कायम हो गई थी। वे एक दूसरे के प्रति अधिक सहानुभूति रखने लगे थे। शेर की गुफा वाले मुनि का सम्मान अन्य दो से कुछ अधिक था। निःशस्त्र रह कर शेर के सामने जाना और उससे मैत्री रखना भी कोई आसान काम नहीं था। उसने अपने सौम्य भाव एवं दृष्टि से सिंह की हिंसक शक्ति को उसके क रतर स्वभाव को भी वश में कर लिया था । ऐसी स्थिति में स्वाभाविक ही था कि उस मुनि का सम्मान तीनों में अधिक होता।
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