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________________ 584 आध्यात्मिक आलोक साधु रमता-रमता कहीं भी चला जाता है । एक ग्राम या नगर में अधिक से अधिक कितने दिनों तक ठहरना चाहिए, इसकी मर्यादा बाँध दी गई है । साधुओं के समान साध्वियों के लिए उग्र विहार का रूप नहीं है। उनके लिए एक जगह रहने का काल द्विगुणित माना गया है । कभी लौंद का महीना आ गया या जीव-जन्तुओं का संचरण बन्द न हुआ या कोई अन्य विशेष कारण उपस्थित हो गया तो छह मास तक स्थिर-निवासकाल बढ़ाया जा सकता है । किन्तु कारण के विना उसे नहीं बढ़ाया जा सकता | साधुओं की इस विहारचर्या का दूसरा उद्देश्य भगवान् वीतराग की ज्ञानगंगा को दूर-दूर और सर्वत्र प्रवाहित करना भी है। आधियों, व्याधियों और उपाधियों से पीड़ित और अनेकविध सांसारिक सन्तापों से सन्तप्त प्राणियों को शान्ति प्रदान करना है। ___ चार मास के वर्षाकाल का साधना के चार मार्गों के साथ बड़ा ही सुन्दर मेल बैठता है । इस काल में ज्ञान के आदान-प्रदान का कार्य चलता रहता है। __ हम आषाढ़ शुक्ला नवमी को सैलाना में आए और कार्तिकी पूर्णिमा तक रहे । यहाँ के नागरिकों की श्रद्धा, भक्ति, सुजनता तथा शील-व्यवहार का हमारे हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ा है । चातुर्मास के समय कुछ साधु-साध्वियों को शारीरिक वेदना का अनुभव करना पड़ा, किन्तु अब वे स्वस्थ हो गए हैं। हमने अपनी चातुर्मासिक साधना का समय पूर्ण कर लिया है। लोगों की सरलता, सुजनता एवं श्रद्धा से हमें बड़ा प्रमोद मिला है । सैलाना वासियों का धार्मिक योगदान बड़ा उत्तम रहा । यहाँ संघनायक न होते हुए भी आदर-सम्मान की प्रवृत्ति, साधुओं के प्रति, श्रद्धाभक्ति ऐसी थी जैसे सब एक शासन सत्र में बंधे हों । अब नियमित रूप से संघ का निर्वाचन हो गया है और श्री तखतमलजी अध्यक्ष, श्री रांकाजी उपाध्यक्ष एवं लोढ़ाजी मन्त्री चुने गए हैं। ये निर्वाचित पदाधिकारी भविष्य में अधिक उत्साह और शक्ति के साथ कार्य करेंगे, ऐसी आशा है। यहां के बालकों तथा नवयुवकों ने बहुत उत्साह दिखलाया । इन भाइयों से मैं अपेक्षा रखता हूँ कि वे शारीरिक श्रम के कार्यों में रुचि लेते रहेगे तथा ज्ञान का बल संचित करके अपने अन्तरंग और बहिरंग को क्षमतायुक्त बनाएंगे । इन्हें संसार के उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना है और शासन के उत्थान का भार भी वहन करना है। जीवन भव्य, दिव्य एवं आध्यात्मिक दृष्टि से उच्च बनाने की दिशा में प्रयास करना सर्वोपरि कर्तव्य है, इस तथ्य को आपको कभी विस्मृत नहीं करना चाहिए । जन-साधारण में नैतिक और आध्यात्मिक जागरण आये बिना किसी भी देश की उन्नति लंगड़ी है । वह टिकाऊ नहीं होगी । अतएव राष्ट्रीय उन्नति के दृष्टिकोण से भी . धर्म के प्रचार की अनिवार्य आवश्यकता है।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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