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________________ 578 .. आध्यात्मिक आलोक स्वाध्याय जीवन के संस्कार के लिए अनिवार्य है । स्वाध्याय ही प्राचीनकालीन महापुरुषों के साथ हमारा सम्बन्ध स्थापित करता है और उनके अन्तस्तल को समझने में सहायक होता है । भगवान् महावीर, गौतम और सुधर्मा जैसे परमपुरुषों के वचनों और विचारों को जानने का एकमात्र उपाय स्वाध्याय ही है | आज स्वाध्याय के प्रचार की बड़ी आवश्यकता है और उसके लिए साधकों की मण्डली चाहिए । ज्ञानबल के अभाव में त्यागियों के ज्ञानप्रकाश को ग्रहण करने वाले पर्याप्त पात्र नहीं मिलते । इसका कारण स्वाध्यायविषयक रुचि का मन्द पड़ जाना है । श्रुतबल की मन्दता वाले श्रोता स्वाध्याय के महत्व को नहीं समझ पाते ।। सम्यक्त्व में श्रद्धा का बल निहित होता है । भरत को यह बल प्राप्त था। चारित्र सामायिक का बल उसे प्राप्त नहीं था तथापि श्रुत सामायिक का बल प्राप्त होने से उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हो सका । यही नहीं, भरत की आठ पीढ़ियां महल में निवास करती हुईं भी मुक्ति पा गई । इसका कारण भी सम्यक्त्व एवं श्रुत सामायिक का बल था । इसका आशय यह न समझ लें कि भरत और उनकी सन्तान ने चारित्र के बिना ही मोक्ष प्राप्त कर लिया । नहीं, चारित्र के अभाव में मोक्ष कदापि संभव नहीं है । इस कथन का आशय यह है कि सम्यक्त्व और श्रुत सामायिक का प्रबल बल होने पर बाह्य क्रिया काण्ड रूप व्यवहारचारित्र के बिना भी स्वात्मरमण रूप निश्चय चारित्र प्राप्त हो सकता है । सामान्य मनुष्य काम-क्रोध आदि की विविध तरंगों में बहता-उछलता रहता है | भरत भारतवर्ष के छहों खंडों के अधिपति होकर भी इन तरंगों के प्रभाव से प्रभावित नहीं हुए । घर का आनुवंशिक संस्कार भी और मनुष्य के अतीतकालिक संस्कार भी ऐसी जगह वह काम कर जाते हैं जो कॉलेज की शिक्षा.या शास्त्राध्ययन से भी प्राप्त नहीं हो सकते । पी.एच.डी. की उच्च उपाधि प्राप्त कर लेने वाले व्यक्ति का दिमाग भले ही गुमराह हो जाय परन्तु सुसंस्कृत व्यक्ति गुमराह नहीं हो सकता । भरत अपने अन्तिम जीवन को निर्वाण के योग्य बना सके, इसका प्रधान कारण श्रुत और सम्यक्त्व है। सामायिक के दो रूप हैं-साधना और सिद्धि | श्रुत सामायिक से साधना संकल्प का आरंभ और उदय होता है । वह विकास पाकर ज्ञान और चारित्र के द्वारा आत्मा में स्थिरता उत्पन्न करता है। यह आत्मस्थिरता ही सामायिक की पूर्णता है | आत्मप्रदेशों का स्पन्दन या कम्पन जब समाप्त हो जाय तभी सामायिक की पूर्णता समझनी चाहिए। इसे आगम की भाषा में अयोगी दशा की प्राप्ति कहते हैं ।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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