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________________ 46 आध्यात्मिक आलोक गया और हर तरफ से आमदनी के साथ खर्च भी बढ़ने लगा । घर पर गाड़ी-घोड़े और चिट्ठी पत्री आती-जाती रहती । भक्त व्यापर की धुन में दिन-रात मस्त रहकर बाबाजी के पास तीन की जगह दो बार ही जाने लगा। महात्माजी ने उसकी हथेली में एक बिन्दी और बढ़ा दी । फिर तो क्या था, हजार से बढ़कर उसकी आमदनी प्रतिदिन दस हजार हो गई और वह इससे भी अधिक के लिए व्यस्त रहने लगा। एक रोज बाबा ने एक बिन्दी और बढ़ा दी जिससे उसकी दैनिक आमदनी एक लाख की हो गई। वह अपने व्यापार में इतना उलझ गया कि महात्मा के दर्शनों को जाना भी भूल गया । सत्संग और कथा श्रवण की तो बात ही क्या ? अब नित्य आने वाले भक्त के महात्माजी को दर्शन नहीं होने लगे। महात्माजी ने समझ लिया कि माया ने अब भली-भांति भक्त को घेर लिया है और उससे अब वह निकल नहीं सकता। निदान एक दिन महात्माजी स्वयं उस भक्त के द्वार पर पहुंचे और पूछा कि क्या बात है, जो अब प्रवचन सुनने नहीं आते हो ? भक्त ने निवेदन किया कि महाराजा बहुत परेशानी रहती है। व्यापार धन्धों से अवकाश ही नहीं मिलता । अतः चाहकर भी आपकी सेवा में नहीं पहुंच पाता | बाबा ने भक्त को पास बुलाया और कहा कि घबराओ नहीं, मैं पलभर में तुम्हारी सभी परेशानी मिटा दूंगा, यह कहकर उन्होंने उसकी हथेली पर के एक के अंक को मिटा दिया । परिणामतः व्यापार की हालत खराब हो गई और नित्य प्रति के भयंकर घाटे से उसका कामकाज बन्द हो गया । इस प्रकार उसकी सारी परेशानी अनायास ही मिट गई। भक्त सिंह से फिर चूहा बन गया था । अब उसे दिन भर पहले की तरह अवकाश ही अवकाश था । बीच में माया से जो बैचेनी बढ़ गई थी वह माया के जाते ही सारी की सारी कूच कर गई। सामान्यतः यही स्थिति साधारण मानवों की होती है । वे लाभ की दशा में बेभान अथच बेचैन हो जाते हैं । खाना-पीना, सोना, आराम करना आदि शारीरिक सुविधा का भी जब ख्याल नहीं रहता तो आत्मिक सुधि और साधना की तो बात ही क्या ? किन्तु याद रखना चाहिए जैसे घृत की आहुति से आग नहीं बुझती वैसे धन की भूख धन से नहीं मिटती है । तन की भूख तो पाव भर अन्न से मिट जाती है किन्तु मन की भूख असीम है | उसकी दवा त्याग और संतोष के पास है, धन या तृष्णा के पास नहीं । यदि मनुष्य इच्छा को सीमित करले तो संघर्ष के सब कारण आप से आप समाप्त हो जाएगे, विषमता टल जायेगी, वर्गभेद मिट कर शान्ति और आनन्द की लहर सब और फैल कर यह पृथ्वी स्वर्ग के समान बन जाएगी।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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