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________________ 506 आध्यात्मिक आलोक · · गूग बहरे आदि होते हैं । ज्ञानार्जन में विघ्न उपस्थित करना ज्ञानावरणीय कर्म के बन्ध का कारण है। आचार्य महाराज को देशना पूरी हुई। सिंहदास श्रेष्ठी ने उनसे प्रश्न किया"महाराज ! मेरी पुत्री की इस अवस्था का क्या कारण है ? किस कर्म के उदय से यह स्थिति उत्पन्न हुई है ?" आचार्य ने उत्तर में बतलाया-"इसने पूर्वजन्म में ज्ञानावरणीय कर्म का गाढ़ बन्धन किया है ।" वृत्तान्त इस प्रकार है-"जिनदेव की पत्नी सुन्दरी थी। वह पांच लड़कों और पांच लड़कियों को माता थी। सब से बड़ो लड़की का नाम लीलावती था। घर. में सम्पत्ति की कमी नहीं थी। उसने अपने बच्चों का इतना लाड़प्यार किया कि वे । ज्ञान नहीं प्राप्त कर सके ।" विवेकहीन श्रीमन्त अपनी सन्तति को आमोद-प्रमोद में इतना निरत बना देते हैं कि पठन-पाठन की ओर उनकी प्रवृत्ति ही नहीं होती। सत्समागम के अभाव में वे आवारा हो जाते हैं। आवारा लोग उन्हें घेर लेते हैं और कुपथ की और ले जाकर उनके जीवन को नष्ट करके अपना उल्लू सीधा करते हैं। आगे चलकर ऐसे लोग अपने कुल को कलंकित करें तो आश्चर्य की बात ही क्या ? अपनो सन्तति के जीवन को उच्च, निर्मल और मर्यादित बनाने के लिये माता-पिता को सजग रहना चाहिये। उन्हें देखना चाहिये कि वे कैसे लोगों की संगत में रहते हैं और क्या सीखते हैं ? इस प्रकार की सावधानी रख कर कुसंगति से बचाने वाले माता-पिता ही अपनी सन्तान के प्रति न्याय कर सकते हैं। . सुन्दरी सेठानी के बच्चे समय पर पढ़ते नहीं थे। बहानेबाजी किया करते और अध्यापक को उल्टा त्रास देते थे। जब अध्यापक उन्हें उपालम्भ देता और डाटता तो सेठानी उस पर चिढ़ जाती। एक दिन विद्याशाला में किसी बच्चे को सजा दी गयी तो सेठानी ने चण्डी का रूप धारण कर लिया। पुस्तकें चूल्हे में झोंक दी और दूसरी सामग्री नष्ट-भ्रष्ट कर दी। उसने बच्चों को सीख दी-शिक्षक इधर आवे तो लकड़ी से उसकी पूजा करना। हमारे यहां किस चीज की कमी है जो पोधियों के साथ माथापच्ची की जाय ? कोई आवश्यकता नहीं है पढ़ने-लिखने की। ___ अनेक श्रीमन्तों के यहां ऐसा ही होता है। पिता सन्तान को पढ़ाना चाहता है तो मां रोक देती है। मां पढ़ाना चाहती है तो पिता रुकावट डालता है। मैथिलीशरण ने .. ठीक लिखा है श्रीमान् शिक्षा दें उन्हें तो श्रीमती कहती-नहीं, . घरो न लल्ला को हमारे नौकरी करनी नहीं।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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