SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 484
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 476 आध्यात्मिक आलोक होती है । ऐसी स्थिति में स्वयं न जाकर किसी दूसरे से कोई वस्तु मंगवा लेना, यह अतिचार है । इस प्रकार के प्रयोग से व्रत का मूल उद्देश्य नष्ट हो जाता है। (२) प्रेष्य प्रयोग : मर्यादित क्षेत्र से बाहर किसी को भेज कर काम करवा लेना भी अतिचार है । किसी श्रावक ने सैलाना की सीमा में ही व्यापार करने का नियम लिया है, किन्तु इन्दौर या रतलाम में विशेष लाभ देखकर पुत्र या मुनीम को भेजकर व्यापार करना, यह भी व्रत का अतिचार है । ऐसा करने से भी व्रत के उद्देश्य में बाधा आती है। (३) शब्दानुपात : आवाज देकर किसी को मर्यादित क्षेत्र के भीतर बुला लेना और बाहर जाकर जो काम करना था वह उसी क्षेत्र में कर लेना शब्दानुपात नामक अतिचार है । मान लीजिए किसी साधक ने पौषधशाला से बाहर न जाने का व्रत लिया । अचानक उसे बाहर का कोई काम पड़ गया । ऐसी स्थिति में वह स्वयं बाहर न जाकर किसी को आवाज देकर पौषधशाला में ही बुला लेता है तो अपने स्वीकृत व्रत का अतिक्रमण करता है क्योंकि ऐसा करने से व्रत का उद्देश्य भंग होता है । (४) रूपानपात : मर्यादित क्षेत्र से बाहर के किसी व्यक्ति को बुलाने के अभिप्राय से अपना रूप-चेहरा दिखलाना भी अतिचार है । किसी प्रकार का इशारा करके काम करवा लेना भी इसी में सम्मिलित है । पौषधशाला में बिस्तर नहीं आया या पानी नहीं आया । उसे मंगवाने के अभिप्राय से अपने आपको दिखलाना या संकेत करना रूपानुपात है। (५) पुद्गल प्रक्षेप : मर्यादित क्षेत्र से बाहर के व्यक्ति का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कंकर, पत्थर, रूमाल या ऐसी ही कोई अन्य वस्तु फेंकना और बाहर की वस्तु मंगवाकर काम में लाना भी अतिचार है । यद्यपि वह बाहर गया नहीं किन्तु बाहर जाने का जो प्रयोजन था उसे उसने पूरा कर लिया । ऐसा करने से व्रत के मूल उद्देश्य में बाधा उपस्थित हुई । अतएव व्रत का आंशिक खण्डन हो गया । उल्लिखित पाँच अतिचारों से बचने से ही देशावकाशिक व्रत को निर्मल रूप से पाला जा सकता है । इस व्रत का दायरा बहुत विशाल है । इसके अनेक रूप जो हो गए हैं, उसी से इसकी विशालता का अनुमान किया जा सकता है। देशावकाशिक और सामायिक व्रत में क्या अन्तर है ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि साधक के कार्यों का आरम्भ-समारम्भ का त्याग इस व्रत में अनिवार्य नहीं
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy