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________________ आध्यात्मिक आलोक 463 विषयलोलुपता का जहर भक्-भव में शोचनीय परिणाम उत्पन्न करता है, जब कि सर्प आदि का विष एक ही भव को नष्ट करता है या नहीं भी नष्ट करता। शरीर में कांटा चुभने पर पीड़ा होती है, विष भक्षण करने से मृत्यु हो जाती है, विषैले जन्तु के डसने से दुःख होता है, किन्तु इनका उपचार संभव है। सैकड़ों मील दूर के तीन-तीन दिन विष लगे हो जाने पर भी गारुड़ी उसके प्रभाव को नष्ट कर देता है । मनोबल और मन्त्रबल की ऐसी शक्ति आज भी देखी-सुनी जाती है। झाड़ने-फूंकने वाले, समाचार कहने वाले को ही झाड़-फूंक कर विष उतार देते हैं । आज भी जंगल में रहने वाले वन्य जाति के लोग विष उतारने का तरीका जानते हैं । इस प्रकार इस बाह्य विष को उतारना आसान है । किन्तु काम, क्रोध, माया, लोभ आदि के विष को परम गारुड़ी ही हल्का कर सकता है । वासना का घोर विष जन्म-जन्मान्तर तक हानि पहुंचाता है । इस विष के प्रभाव को दूर करने के लिए साधक भगवान महावीर की साधना का लाभ प्राप्त करते हैं। अमावस्या को महावीर स्वामी ने निर्वाण प्राप्त कर लिया । उनका इस धरती पर सशरीर अस्तित्व नहीं रहा । मानों मध्यलोक का सूर्य सदा के लिए अस्त हो गया। किन्तु उनका उपदेश आज भी विद्यमान है । भगवान् का स्मरण करके और उनके उपदेश के अनुसार आचरण करके हम अब भी अपने जीवन को उच्च, पवित्र एवं सफल बना सकते हैं । हमें आज के दिन भगवान के पावन संदेशों पर गहराई के साथ विचार करना चाहिए। छोटा और पुराना मकान भी पोत लेने, साफ कर लेने से रमणीक लगने लगता है। दीवाली के अवसर पर लोग ऐसा करते हैं । तन की शोभा के लिए स्नान किया जाता है, साबुन लगाया जाता है, सुन्दर स्वच्छ वस्त्राभूषण धारण किये जाते हैं । मन्दिर का आदर देव के कारण है । देव के बिना मन्दिर आदरणीय नहीं होता । इसी प्रकार इस शरीर रूपी मन्दिर की जो भी शोभा या महत्ता है, वह आत्म-देव के कारण है । घर की शोभा बढ़ाई जाय मगर घर में रहने वाले नर की ओर ध्यान न दिया जाय, यह बहुत बड़ा प्रमाद है, मूर्खता है । ऐसा करने से वह कमजोर हो जाएगा । विनम्रता आदि सदगुणों से पोषण न होने के कारण आत्मदेव दुर्बल हो जाता है । दिव्य गुणों का विकास न करने से आत्मा का दानव रूप प्रकट होता है । अतएव जीवन में सद्गुणों की सजावट करनी चाहिए । आपको अपनी आत्मा में अमर आलोक प्रकट करना है, आध्यात्मिक भावना के द्वारा जीवन को चमकाना है । यही दीपावली पर्व का महान् सन्देश है । यह - बाह्य सजावट तो पर्व के साथ ही समाप्त हो जाएगी । इससे जीवन सार्थक न
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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