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________________ 460 आध्यात्मिक आलोक आज लक्ष्मी की पूजा करने वाले तो बहुत हैं किन्तु व्रत साधना के लिए आगे आने वाले कितने हैं ? राग और भक्ति तथा अर्थ और भक्ति में क्या सामंजस्य है, यथावसर इस पर प्रकाश डाला जाएगा। राजा उदायन ने भी पहले श्रावक के व्रतों को अंगीकार किया फिर श्रमण-दीक्षा अंगीकार की । गृहस्थ जीवन में रहते हुए बिम्बसार, अजातशत्रु उदायन, चण्डप्रद्योत और चेटक आदि भगवान् के वचनों पर श्रद्धाशील बने । उन्होंने राज्य सम्बन्धी उत्तरदायित्व एवं बन्धन से अपने आपको मुक्त या हल्का कर लिया । बहत्तर वर्ष की आयु में भगवान् ने अपना वर्षाकाल पावापुरी में व्यतीत किया । यह उनका अन्तिम वर्षाकाल था । भगवान के सिवाय कोई नहीं जानता था कि यह वर्ष उनके जीवन का अन्तिम वर्ष है । दीर्घकाल से चलने वाली भगवान की साधना पूर्ण हो चुकी । महाराजा हस्तिपाल की रथशाला में उनका अन्तिम चातुर्मास हुआ । अन्य राजाओं ने भी चातुर्मास काल में भगवान् की उपस्थिति से लाभ उठाया । महाराजा हस्तिपाल के प्रबल सौभाग्य का योग समझिए कि उन्हें अन्तिम समय में चरम तीर्थंकर की सेवा, भक्ति, एवं उपासना का दुर्लभ लाभ प्राप्त हुआ। कवियों ने भी इस प्रसंग को लेकर अपनी वाणी को पवित्र बनाने का प्रयत्न किया पर्व यह मंगलमय आया रे, पर्व यह मंगलमय आया। अन्तिम वर्षाकाल प्रभु ने पावापुर ठाया ।..... हस्तिपाल की राजकुशाला प्रभु ने पवित्र बनाया 1.... - वीर हुए निर्वाण गौतम ने केवलि पद पाया |...... कार्तिकी अमावस्या को लोक के एक असाधारण, अद्वितीय, महान साधक की साधना चरम सीमा पर पहुँची । उनकी आत्मा अनन्त ज्ञान-दर्शन से सम्पन्न तो पहले ही हो चुकी थी, जीवन्मुक्त दशा पहले ही वे प्राप्त कर चुके थे, परम निर्वाण-विदेह-मुक्ति भी उन्हें प्राप्त हो गई । भगवान् सिद्ध हुए और गौतम स्वामी को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। गौतम स्वामी ने अपनी साधना का अभीष्ट मधुर फल प्राप्त किया। उनकी चेतना पर जो हल्के से आवरण शेष रह गए थे, वे भी आज निश्शेष हो गए । उन्हें निरावरण उपयोग की उपलब्धि हुई । वे सर्वज्ञ-सर्वदर्शी और अनन्त शक्ति से सम्पन्न हो गए । प्रभु के निर्वाण ने उनकी आत्मा को पूर्ण रूप से जागृत कर दिया। उन्हें महान् लाभ हुआ । एक कारीगर साधारण मलिन रत्न को शाण पर चढ़ा कर चमकीला बना देता है । उसकी चमक बढ़ जाती है और चमक के अनुसार .
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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