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________________ [७०] दीपावली की आराधना दीपमालिका पर्व चरम तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर की परम पावन स्मृति का जाज्वल्यमान प्रतीक है । प्रभु महावीर के निर्वाण की स्मृति आज के दिन ताजा हो जाती है। भगवान ने इसी दिन निर्वाण लाभ किया था। तभी से यह पर्व लोग अपने-अपने स्तर पर एवं मन्तव्य के अनुसार मनाते आ रहे हैं। कुछ मनीषियों का कथन है कि दीपमालिका पर्व भगवान महावीर के निर्वाण से पहले से ही आर्य जाति में प्रचलित था, परन्तु इस मत की पुष्टि में कोई स्पष्ट और ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं है। इस अवसर पर दीपमालिका के इतिहास की छानबीन नहीं करना है। यह तो सुनिश्चित है कि या तो पूर्व परम्परागत इस पर्व को भगवान महावीर के निर्वाण ने सजीव एवं मांगलिक स्वरूप प्रदान किया या भगवान के निर्वाण के कारण ही इस पर्व का प्रतिष्ठान हुआ। दोनों स्थितियों में इस पर्व के साथ भगवान् महावीर के निर्वाण का घनिष्ठ सम्बन्ध है। दीर्घतपस्वी श्रमणोत्तम महावीर जैसे लोकोत्तर महापुरुष की स्मृति में मनाये जाने के कारण यह पर्व भी लोकोत्तर पर्व है । अतएव इसे लोकोत्तर भावना से एवं लोकोत्तर लाभ की दृष्टि से मनाना चाहिए । आज की इस मंगलमय वेला में हम भगवान महावीर की स्मृति को ताजा कर रहे हैं और उन स्मृतियों से जीवन निर्माण का पथ-प्रदर्शन भी प्राप्त कर रहे हैं । पर्व के मंगलमय रूप को सभी अपनाते हैं । जो रागी हैं वे राग की सीमा में पर्व मनाते हैं, भोगी जीव उसे भोग का विशिष्ट अवसर मानते हैं, किन्तु जो विवेकशाली हैं वे पर्व की प्रकृति का विचार करते हैं । सोचते हैं कि इस पर्व के पीछे क्या इतिहास है ? क्या उद्देश्य है ? और वे उसी के अनुरूप पर्व का आराधन
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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