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आध्यात्मिक आलोक रही हूँ। व्यवहार में महाजन का बच्चा यदि जान-बूझ कर ऐसा लेन-देन करे जिससे आर्थिक हानि हो तो उसका पिता नाराज होता है, उसी प्रकार मेरी माता मुझसे अप्रसन्न है । किसी ने कहा है-'सलज्जा गणिका नष्टा' अर्थात् वेश्या यदि लज्जा करे तो बर्बाद हो जाती है । परन्तु मेरा जीवन अब बदल चुका है। माता असन्तुष्ट है। __ मैं उसे भी राह पर लाने का प्रयत्न कर रही हूँ। मुझे सन्तोष और प्रसन्नता है कि आपको अपनी पदमर्यादा का भान हो गया ।"
जिन्होंने ज्ञान का रस पिया हो वही दूसरों को सुधारने के लिए प्रयत्नशील होता है । देवेन्द्र के प्रयत्न से भी वह धर्म से विचलित नहीं होता, साधारण मनुष्य की तो बात ही क्या ?
__इसके लिए प्रत्येक साधनापरायण व्यक्ति को चार बातें ध्यान में रखनी चाहिये-७ स्थिर आसन (२) स्थिर दृष्टि () मित भाषण और सद्विचार में निरन्तर रमणता । इन चार बातों पर ध्यान रखने वाला लोक-परलोक में लाभ का भागी होता है।
रूपकोषा धर्म के मार्ग पर चलने लगी । वह श्राविका के योग्य सभी व्यवहार कर रही थी । सामायिक आदि आवश्यकों का अनुष्ठान करती थी। जब वेश्या के समान गन्दा जीवन व्यतीत करने वाली अपना जीवन सुधार सकती है तो साधारण मनुष्य के लिए धर्म मार्ग पर चलना कौन कठिन बात है । काली मैली दीवार चूना (सफेद) का हाथ फेरने से चमक उठती है तो क्या मलिन मन निर्मल नहीं हो सकता ? दीपावली के अवसर पर मकान की सफाई की जाती है तो मन की भी सफाई करनी चाहिये । मन की सफाई से आत्मिक गुण उज्ज्वल होते हैं और जीवन पावन बन जाता है । यही कल्याण का मार्ग है ।