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________________ आध्यात्मिक आलोक 363 की आशा कम होने से भैंस के पाड़े पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता जितना पाड़ी पर दिया जाता है। पाड़े को बोझ समझ कर लोग उससे पिण्ड छुड़ा लेते हैं । रेल और मोटर का उपयोग करने में हिंसा कम दीखती है परन्तु क्या यह बैलों और घोड़ों आदि पर दया है ? दीखने में ऐसा लगता है कि हिंसा नहीं है किन्तु इन यांत्रिक सवारियों से कितने मनुष्य, पशु, कुत्ते पक्षी आदि मरते हैं, इस बात का विचार करने वाले कितने हैं ? जिस सवारी में जानवर जोता जाता है, उससे हिंसा की संभावना बहुत कम रहती है । विषम परिस्थिति में अथवा किसी दूसरे जानवर के सामने आ जाने पर जुता हुआ जानवर अपनी गति धीमी कर लेता है और दुर्घटना को या हिंसा को बचा लेता है। यह बात वेग के साथ दौड़ने वाली गाड़ियों में कैसे संभव हो सकती है ? ये वेगवान गति वाली गाड़ियां महारम्भ और महाहिंसा की जननी हैं । व्रती श्रावक सदैव अपने विवेक की तराजू पर तोलेगा कि किस कार्य से.महारंभ होता है और कौनसा कार्य अल्प आरंभ वाला है ? वह महारंभ के कार्य को कदापि नहीं करेगा । भाडीकम्मे घोर हिंसा का कारण होने से . महारंभ है और इसी कारण श्रावक इसे नहीं अपनाता । (५) फोड़ीकम्मे ( स्फोट कर्म )- इसका अर्थ है भूमि को फोड़ना । वैज्ञानिक साधनों द्वारा सुरंग आदि लगा कर भूमि का भारी भाग फोड़ दिया जाता है। कुदाली, फावड़ा आदि से जमीन फोड़ने से भी त्रस-स्थावर जीवों की हिंसा होती है। पड़ती जमीन में जीव-जन्तु निर्भय होकर आश्रय लेते हैं ? उसी प्रकार जैसे कमरे में सफाई न हो तो कीड़े-मकोड़े, दीमक आदि अपना अड्डा जमा लेते हैं। ऐसे स्थानों को सुरक्षित, 'भय-वर्जित तथा मनुष्यों के संचार से रहित समझ कर वे वहां आवास करने लगते हैं । दरारों में, जमीन के नीचे, पत्थरों की आड़ में हजारों जीव-जन्तु शरण लिए रहते हैं । ऐसी स्थिति में सुरंग लगाने वाले कहां तक जीव-जन्तुओं की रक्षा कर सकेंगे । जहां भूमि फोड़ी गई और मिट्टी डाली गई, दोनों स्थानों के जीवों की रक्षा संभव नहीं है । अतएव भूमि को फोड़ने का धंधा करना विशेष हिंसा कारक होने से कर्मादान में गिना गया है। व्यापार-धंधे में सामाजिक दृष्टिकोण को भी प्राचीन काल में महत्व दिया जाता था । यहां भी उस दृष्टिकोण से विचार किया जा सकता है । प्राचीन समाजिक व्यवस्था में अमुक-अमुक वर्गों में अमुक अमुक धंधों का बंटवारा किया गया था । इस बंटवारे के कई लाभ थे । प्रथम तो जिस वर्ग का जो धंधा हो उसे वही वर्ग करे तो बेकारी की संभावना कम रहती है । एक वर्ग के लोगों का काम दूसरे वर्ग के लोग हथिया लें तो पहले वर्ग में बेकारी फैलती है । स्मृतियों में इस दृष्टिकोण का प्रतिपादन किया गया है।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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