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________________ आध्यात्मिक आलोक 309 मुनि क्षण भर के लिए सोच-विचार में पड़ गए । वे सोचने लगे- मेरे कारण एक अज्ञानी किसान के प्राण चले जाएंगे तो मैं इसे कैसे सहन कर सकूंगा । इस घटना से तो जैन शासन की भी बदनामी होगी । उसी समय उन्होंने अपने कर्त्तव्य का निर्णय कर लिया । मुनिजी ने घोषणा कर दी - "जब तक उस किसान को नहीं छोड़ दिया जाएगा, तब तक मैं अन्न-जल ग्रहण नहीं करूंगा ।” मुनिराज की भीष्म प्रतिज्ञा सुन कर ग्राम के लोग सन्न रह गए । सर्वत्र उनकी दयालुता की भूरि-भूरि प्रशंसा होने लगी । उसी समय वह किसान छोड़ दिया गया । किसान के मन में भारी उथल-पुथल हुई । वह सोचने लगा “मैं जिसकी जान लेने पर उतारू हुआ, उसी ने मेरी जान बचाई। ऐसा महात्मा धन्य है । मैं कितना अधम हूँ कि एक निरपराध साधु को व्यथा पहुँचाने से न हिचका !" श्री राम और महावीर स्वामी की कथाओं में भी करुणा का सजीव आदर्श उपलब्ध होता है, मगर उन्हें हुए बहुत काल हो चुका है। मगर भूधरजी महाराज को हुए तो लम्बा समय नहीं हुआ । वे आधुनिक काल के ही महापुरुषों में गिने जा सकते हैं । उनका ज्वलन्त जीवन हमारे समक्ष एक महान् आदर्श है । राम ने रावण की दानवी लीला समाप्त की । हमारी दृष्टि में आत्मा का शुद्ध स्वरूप ही राम का प्रतीक है। उन्होंने काम रूपी दशानन पर विजय प्राप्त की । रावण अपने समय का महान् शक्तिशाली राजा था । उसका जीवन वैसा पतित नहीं था जैसा साधारण लोग समझते हैं । वह बड़ा नीतिज्ञ और भक्त था । बाल्मीकि ने भी उसे महात्मा माना है। उसके जीवन में मर्यादा थी, इसी कारण सीता का शील सुरक्षित रह सका । फिर भी उसके प्रति आज भी घृणा प्रकट की जाती है । किन्तु आज समाज में रावण से बढ़ कर न जाने कितने महारावण मौजूद हैं । वे अपने हृदय को टटोल कर आज अपनी शुद्धि का संकल्प कर लें तो उनके लिए विजयादशमी वरदान सिद्ध होगी । जैसे राम, महावीर स्वामी तथा भूधरजी जैसे महापुरुषों ने अन्तःकरण के विकारों पर विजय प्राप्त की, वैसे ही हमें भी अपने विकारों को जीतना है । यही विजयादशमी का दिव्य संदेश है । जो विकार पर विजय प्राप्त करेगे वे अपना इहलोक और परलोक सुधार सकेंगे । उन्हीं का कल्याण भी होगा ।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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