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________________ आध्यात्मिक आलोक 305 फैलाएगा । ज्ञान, दर्शन चारित्र का प्रचार भ्रमण बन्द होने से नहीं हो सकेगा और जन-जन को उनके जीवन और प्रवचन से जो प्रकाश मिलता है, वह नहीं मिल सकेगा । हाँ, साधु के लिए गमनागमन का निषेध वहीं है जहां जाने से उसके ज्ञान एवं चारित्र में बाधा उपस्थित होती हो। आनन्द ने अपने गमनागमन की मर्यादा की थी । सम्यग्दृष्टि विद्यमान होने से उसमें ज्ञान का प्रकाश था, पर चारित्र का पूर्ण प्रकाश नहीं था वह क्षेत्रीय सीमा निर्धारित करके अपनी कामनाओं को मर्यादित करने का प्रयत्न करने लगा | उसने ऊर्ध्वदिशा, अघोदिशा और तिरछी दिशा में गमनागमन करने का परिमाण बांध लिया । 'जिस साधक ने दिशा परिमाण व्रत अंगीकार किया है, उसे चलते-चलते रास्ते में सन्देह उत्पन्न हो जाय कि कहीं वह निर्धारित परिमाण का उल्लंघन तो नहीं कर रहा है ? फिर भी वह आगे चलता जाय तो उसका चलना व्रत का अतिचार है। ऐसा करने से व्रत में मलिनता उत्पन्न होती है । अगर साधक जानबूझ कर किसी कारण से परिमाण का उल्लंघन करता है तो अनाचार का सेवन करता है। सदिग्ध अवस्था में व्रत का जो उल्लंघन हो जाता है, वह अतिचार की कोटि में आता है, जैसे रात्रि भोजन त्यागी अगर सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के पश्चात् शंका की स्थिति में कार्य करे तो वह अतिचार है। स्वेच्छापूर्वक व्रतों को ग्रहण करने वाला साधक अतिचार से भी बचने की सावधानी रखता है और ऐसा प्रयत्न करता है कि उसका व्रत सर्वथा निर्दोष रहे, फिर भी भूल-चूक हो जाना स्वाभाविक है। ऐसी स्थिति में अगर व्रत दुषित हो जाता है मगर दूषित करने की इच्छा नहीं होती तो उसे व्रत का आशिक विराधन ही समझा जाता है। वस्तुतः साधक का दृष्टिकोण पापों पर विजय प्राप्त करना है, जिन्होंने प्रत्येक संसारी जीव को अनादिकाल से अपने चंगुल में फंसा रखा है। 'जे तु जीत्योरे ते मुझ जीतियो, पुरुष किसू मुझ नाम, प्रभु के चरणों में आत्मनिवेदन का ढंग निराला होता है । अध्यात्म-भावना के रंग में रंगा हुआ साधक अपनी आन्तरिक निर्बलता का अनुभव करता है और उस पर विजय प्राप्त कर लेता है । उपर्युक्त पद्य में भक्त ने निवेदन किया है - प्रभो! जिन काम क्रोध आदि विकारों को आपने पराजित कर दिया, उन विकारों ने मुझे
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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